यूक्रेन पर हमला करने और 16 माह में भी वहां निर्णायक जीत हासिल न कर पाने के कारण पहले से ही सवालों से घिरे रूसी राष्ट्रपति पुतिन के लिए इससे बड़ा संकट और कोई नहीं कि वैगनर नामक एक निजी सशस्त्र समूह ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस निजी सेना ने एक रूसी शहर रोस्तोव पर कब्जा कर वहां स्थित सैन्य ठिकाने को जिस तरह घेरा, उससे पता चलता है कि उसके इरादे खतरनाक हैं। चूंकि यह निजी सेना राजधानी मास्को पहुंचने की कोशिश कर रही है, इसलिए यह माना जा रहा है कि उसे रूसी सेना के भी कुछ गुटों का समर्थन प्राप्त है।

सच्चाई जो भी हो, वैगनर का विद्रोह रूसी राष्ट्रपति की मुसीबत बढ़ाने और उनकी साख गिराने वाला है। उनके सामने दोहरा संकट आ खड़ा हुआ है। अब उन्हें यूक्रेन की जमीन पर उसकी सेना के साथ ही अपने घर में भाड़े के सैनिकों से भी निपटना होगा। हालांकि पुतिन ने वैगनर के विद्रोह को विश्वासघात करार देते हुए उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की बात कही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी कल तक वह यूक्रेन में उसका सहयोग ले रहे थे। वैगनर के लड़ाके यूक्रेन में रूसी सेना के साथ लड़ रहे थे तो पुतिन की सहमति और समर्थन से।

वैसे तो रूस में किसी को सशस्त्र समूह गठित करने की अनुमति नहीं है, लेकिन किन्हीं कारणों से वैगनर को इसकी इजाजत दी गई। इस समूह के लड़ाके सीरिया, लीबिया आदि में भी लड़ते रहे हैं। इसमें रूसी सेना के कुछ पूर्व सैनिकों के साथ अपराधी भी हैं। भाड़े के सैनिक केवल पैसे के लिए लड़ते हैं और वे अपने स्वार्थ के लिए किसी का भी साथ दे सकते हैं। कई बार वे अपने समर्थकों और संरक्षकों के लिए ही मुसीबत बन जाते हैं। पता नहीं क्यों पुतिन यह साधारण सी बात नहीं समझ सके? लगता है वह यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे।

भले ही वैगनर के पास 25 हजार लड़ाके हों और उसके मुखिया ने यह दम भरा हो कि वह रूस के सैन्य नेतृत्व को उखाड़ फेंकेंगे, लेकिन रूस की सेना दुनिया की ताकतवर सेनाओं में से एक है। उसका संख्या बल भी कहीं अधिक है। इसमें संदेह है कि वैगनर के लड़ाके उसका मुकाबला कर पाएंगे, लेकिन यदि रूसी सेना के कुछ जनरल उसके साथ मिल जाते हैं तो पुतिन का संकट गहरा जाएगा। उन खबरों की अनदेखी नहीं की जा सकती, जिनमें यह कहा जाता रहा है कि रूसी सेना के कुछ अफसर यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन से असहमत हैं। रूस की जनता का एक वर्ग भी यह मानता है कि पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर उसका संकट बढ़ाने का काम किया है। विद्रोह का नतीजा कुछ भी हो, पुतिन की ताकतवर नेता की छवि धूमिल होना तय है।