योजनाओं की गुणवत्ता, आखिर भविष्य की चुनौतियों का सही आकलन करते हुए क्यों नहीं बन पाती योजनाएं?
स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं के बाद भी शहरों की सूरत अपेक्षाओं के अनुरूप बदलती नहीं दिख रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि नगर निकायों और शहरी विकास की अन्य एजेंसियों के काम करने का ढर्रा पहले जैसा ही है। इसी कारण ठंड के दस्तक देने के साथ ही देश की राजधानी समेत उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया है।
रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर का यह आकलन आशा के अनुरूप ही है कि अगले सात वर्षों में भारत जापान को पीछे छोड़कर एशिया की दूसरी और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस तरह का आकलन अन्य रेटिंग एजेंसियों के साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी कर चुका है। उसका तो यह मानना है कि भारत 2027-28 तक ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यह कह चुके हैं कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। यद्यपि वैश्विक अर्थव्यवस्था तमाम चुनौतियों का सामना कर रही है, फिर भी आम धारणा यही है कि भारत अगले पांच-सात वर्षों में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। इससे भारत का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और अधिक बढ़ेगा, लेकिन क्या यह उपलब्धि हासिल होने के साथ ही आम भारतीयों का जीवन सुगम होगा?
यह वह प्रश्न है, जिस पर गंभीरता से विचार इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि विकास के इंजन कहे जाने वाले हमारे शहर और यहां तक कि महानगर भी तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं के बाद भी शहरों की सूरत अपेक्षाओं के अनुरूप बदलती नहीं दिख रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि नगर निकायों और शहरी विकास की अन्य एजेंसियों के काम करने का ढर्रा पहले जैसा ही है। इसी कारण ठंड के दस्तक देने के साथ ही देश की राजधानी समेत उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया है। ऐसा प्रदूषण से निपटने के तमाम दावों के बावजूद हुआ है। ऐसे दावे वर्षों से किए जा रहे हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही है।
यह ठीक है कि पिछले कुछ वर्षों में देश भर में बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास हो रहा है और वह ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंच रहा है, लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि जो राजमार्ग, सड़कें, पुल आदि बन रहे हैं, उनकी गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर की है? इसी तरह क्या यह किसी से छिपा है कि नागरिक सुविधाओं की गुणवत्ता बढ़ाने वाली योजनाओं के साथ आधारभूत ढांचे की विभिन्न योजनाएं जब तक पूरी होती हैं, तब तक वे अपर्याप्त साबित होने लगती हैं। ऐसा बढ़ती आबादी के दबाव के कारण भी होता है और समस्याओं का फौरी समाधान करने की प्रवृत्ति के कारण भी।
आखिर हमारे नौकरशाह भविष्य की चुनौतियों का सही आकलन करते हुए योजनाएं क्यों नहीं बना पाते? यह समझा जाना चाहिए कि भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने के साथ ही शहरी और ग्रामीण जीवन को सुगम बनाने की योजनाओं की गुणवत्ता पर भी गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। इसी के साथ आम लोगों को भी अपने नागरिक दायित्वों के प्रति सजग होना होगा, क्योंकि कोई भी देश जनता के सहयोग से ही उन्नत बनता है।