आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन विधेयकों को संसद से स्वीकृति मिलना एक बड़ा कदम है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य से संबंधित विधेयकों के कानून का रूप लेने से केवल अंग्रेजों के जमाने के कानूनों से ही मुक्ति नहीं मिलेगी, बल्कि कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को सुधारने में भी मदद मिलेगी। इन प्रस्तावित कानूनों में आतंकवाद, महिला विरोधी अपराधों, देशद्रोह और भीड़ की हिंसा से संबधित मामलों को लेकर भी नए प्रविधान किए गए हैं। इसके अलावा कई ऐसे कृत्यों को अपराध की श्रेणी में लाया गया है, जिनसे निपटने के लिए अभी तक कोई प्रभावी उपाय नहीं थे। कायदे से औपनिवेशिक युग वाले आपराधिक कानूनों को बहुत पहले ही संशोधित-परिवर्तित कर दिया जाना चाहिए था, क्योंकि अंग्रेज शासकों ने इन कानूनों का निर्माण भारतीयों पर जबरन शासन करने के लिए बनाया था।

इन कानूनों का उद्देश्य भारत के लोगों को न्याय देना कम, उन्हें दंडित करना अधिक था। अच्छा होता कि आपराधिक कानूनों से जुड़े तीनों विधेयकों पर लोकसभा और राज्यसभा में जो चर्चा हुई, उसमें विपक्ष की भी भागीदारी होती, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो सका, क्योंकि विपक्षी सांसदों की दिलचस्पी दोनों सदनों में हंगामा करके खुद को निलंबित कराने में थी। इसके बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि इन विधयेकों के प्रारूपों पर व्यापक चर्चा नहीं हुई। वास्तव में इन पर पिछले चार वर्षों से विभिन्न स्तरों पर चर्चा हो रही थी। गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने भी इस पर गहन चर्चा की और उसके आधार पर कुछ संशोधन भी किए गए।

आपराधिक कानूनों से जुड़े तीनों विधेयकों पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने यह रेखांकित किया कि इससे लोगों को समय पर न्याय मिलना संभव हो सकेगा। ऐसा वास्तव में हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि अभी तो तारीख पर तारीख का सिलसिला कायम है। इस सिलसिले को समाप्त करना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हो गया है। इस सिलसिले के चलते लोगों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा कम हो रहा था। इस सिलसिले को थामने के लिए न्यायिक तंत्र के काम करने के तौर-तरीकों को भी बदलना होगा।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि समय पर न्याय न मिलना एक गंभीर समस्या है। जब इस समस्या का निदान होगा, तभी कानून के शासन को बल मिलेगा और अपराधियों-आतंकियों के साथ संगठित अपराध में लिप्त तत्वों के दुस्साहस पर लगाम लगेगी। हमारी न्याय प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए, जिससे नियम-कानूनों का पालन करने वालों को बल मिले और कानून के शासन को चुनौती देने वाले हतोत्साहित हों। यह स्वागतयोग्य है कि आपराधिक कानूनों में बदलाव लाने के साथ ही उनके अमल को प्रभावी बनाने के लिए तैयारी कर ली गई है। चूंकि इसमें तकनीक का भी सहारा लिया गया है इसलिए यह आशा की जाती है कि कानून एवं व्यवस्था में सुधार के साथ ही लोगों को समय पर न्याय भी मिल सकेगा।