सरकार ने मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता और विकास का वर्षों से बेहतरीन प्रबंधन किया है। इसी का नतीजा है कि राजकोषीय घाटा, चालू खाते का घाटा, मजबूत फाइनेंशियल सिस्टम, नियंत्रित महंगाई और ग्रोथ के आंकड़े जैसे भारत के मैक्रोइकोनॉमिक इंडिकेटर बेहतरीन हैं। बजट इस प्रगति को आगे बढ़ाता है। जरूरी निवेश के लिए बड़ी रकम के आवंटन के बावजूद राजकोषीय घाटा कम हो रहा है।

विदेशी कर्ज और जीडीपी का कम अनुपात, ऊंचा विदेशी मुद्रा भंडार, बेहतर होता इंपोर्ट कवर और निर्यात में वृद्धि जैसे बाह्य पैमाने पर भारत मजबूत बना हुआ है। कॉरपोरेट कर्ज जीडीपी के 65% से घटकर 52% रह गया है। अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है। निजी खपत और ग्रामीण क्षेत्र के विकास में भी सुधार आ रहा है। दीर्घकाल में खपत और इन्फ्रास्ट्रक्चर की ग्रोथ जैसे मोर्चे पर भी भारत की स्थिति मजबूत है।

बजट में नौ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर फोकस किया गया है। ये हैं- कृषि, रोजगार, मानव विकास, ऊर्जा सुरक्षा, मैन्युफैक्चरिंग, शहरी विकास, इनोवेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और अगली पीढ़ी के सुधार। बजट में शिक्षा और रोजगार में बदलाव का प्रयास दिखता है। उच्च शिक्षा तक पहुंच, स्किल ट्रेनिंग और बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों पर जोर दिया गया है।

कई क्षेत्रों में टैक्सेशन को आसान करने की कोशिश की गई है। इससे कर संबंधी जटिलताएं कम होंगी। इस एप्रोच के कारण ही पिछले कुछ वर्षों में जीडीपी की तुलना में कर संग्रह का अनुपात काफी बढ़ा है। कंप्यूटराइजेशन और टैक्सेशन व्यवस्था आसान करने जैसे सरकार के कदमों की इसमें अहम भूमिका रही है।

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स जैसे कुछ क्षेत्रों में टैक्स बढ़ाया गया है और बाजार उससे निपटने में सक्षम है। एसेट एलोकेशन में मदद के लिए सरकार के कदम, जैसे रियल स्टेट में इंडेक्सेशन खत्म करना, स्वागत योग्य हैं क्योंकि इनसे ट्रांजैक्शन वॉल्यूम बढ़ने की उम्मीद है।

कुल मिलाकर देखें तो बजट निरंतर ग्रोथ को सपोर्ट करता है, हमारी जरूरतें पूरी करता है और एक सकारात्मक नजरिया देता है। उज्जवल आर्थिक भविष्य के बावजूद भारतीय बाजारों की वैल्यूएशन काफी ज्यादा है। मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात 140% है जो ऐतिहासिक औसत 89% से काफी अधिक है। कोविड के बाद से अब तक इक्विटी मार्केट में निवेशकों की रुचि बहुत ज्यादा रही है। जब लिक्विडिटी अधिक हो और वैल्यूएशन भी ज्यादा हो तब सुरक्षा के लिए मार्जिन बहुत कम या बिल्कुल नहीं रह जाता है। इस लिहाज से निवेश रणनीति में सावधानी की जरूरत है।

इस समय मेगा कैप और लार्ज कैप शेयरों की मार्केट वैल्यूएशन बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन हम फेयर वैल्यू से बाजार को फेयर वैल्यू से थोड़ा ऊपर की ओर जाते हुए देख रहे हैं। स्मॉल कैप और मिडकैप स्टॉक के लिए हमारा नजरिया सावधानी भरा रहेगा और शेयर विशेष के आधार पर निर्णय लेना उचित होगा।

इस संदर्भ में एक तार्किक लेकिन कंजरवेटिव एप्रोच जरूरी है, जिसमें एसेट एलोकेशन के डायवर्सिफिकेशन पर फोकस हो। एसेट को इक्विटी, डेट और कमोडिटी के साथ नकद में भी डायवर्सिफाई किया जा सकता है। इस तरह की मल्टी-ऐसेट स्ट्रैटजी संतुलित जोखिम और रिटर्न सुनिश्चित करती है। मौजूदा बाजार परिस्थितियों में यही श्रेष्ठ नीति होनी चाहिए।

भारत की लॉन्ग टर्म ग्रोथ स्टोरी बरकरार है। इसलिए मौजूदा निवेशकों को अपना निवेश बनाए रखना चाहिए। जो लोग इक्विटी में निवेश बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें लार्ज कैप, फ्लेक्सी कैप, बिजनेस साइकिल, मैन्युफैक्चरिंग, एनर्जी या हाइब्रिड कैटेगरी जैसी इन्वेस्टमेंट स्कीम पर फोकस करना चाहिए।

अंत में, भारत के ढांचागत सुधार अगले कुछ दशकों के लिए स्पष्ट आर्थिक विकास का मार्ग प्रस्तुत करते हैं। यह बजट पिछले कुछ वर्षों के दौरान सुधारों में हुई प्रगति को आगे बढ़ाता है। मुख्य चुनौती है कि भारतीय बाजार सस्ते नहीं हैं। इसलिए जोर कंजरवेटिव निवेश की रणनीति पर है।