नई दिल्ली, विवेक तिवारी। आजादी से पहले अंग्रेजी शासन में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। उन्हें इंग्लैंड से आने वाला नमक का ही खाना पड़ता था। इसी के विरोध में महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च की शुरुआत की थी। ब्रिटिश हुकूमत को संदेश देने के लिए बापू ने एक चुटकी नमक उठाया और कहा, 'इसके साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहा हूं।' बापू का वह नमक आंदोलन क्रांतिकारी साबित हुआ। उसने जाति, राज्य, भाषा की दीवारें तोड़ते हुए पूरे देश में आजादी की लहर पैदा कर दी थी। इतिहास की सबसे बड़ी जनक्रांतियों में से एक, नमक आंदोलन में बड़ी तादाद में महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था। आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाली कमलादेवी और उनकी साथी महिलाओं ने नमक बनाया और उनके बनाए नमक का पहला पैकेट 501 रुपये में बिका था।

उस दौर में किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि अमेरिका, चीन, ब्रिटेन समेत दुनिया के बड़े मुल्क भारत से नमक आयात करेंगे। आज गुजरात के कच्छ इलाके से पूरी दुनिया को नमक की सप्लाई हो रही है। कच्छ के अलावा गुजरात के 14 जिलों में नमक बनाया जाता है। वहीं देश से निर्यात होने वाले नमक का 90 फीसदी निर्यात कांडला पोर्ट से होता है। दुनिया में 2020-21 में लगभग 29 करोड़ मीट्रिक टन नमक का उत्पादन हुआ। स्टैटिस्टा के अनुसार चीन और अमेरिका सबसे बड़े नमक उत्पादक हैं। 2021 में चीन में 6.4 करोड़ टन और अमेरिका में 4 करोड़ टन नमक का उत्पादन हुआ। तीसरे स्थान पर भारत है जहां 2.9 करोड़ मीट्रिक टन नमक का उत्पादन किया गया। संसद में एक प्रश्न के जवाब में सरकार ने बताया कि देश में बनने वाले कुल नमक का लगभग 85 फीसदी हिस्सा गुजरात से आता है। विश्व की 8.5-10 फीसदी तक नमक की जरूरत भारत पूरी करता है।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते बढ़ी नमक की मांग

कच्छ का नमक काफी अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। पिछले कुछ सालों में यूरोप और अमेरिका में भारत के नमक की मांग काफी बढ़ गई है। इंडियन साॅल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) के अध्यक्ष बीसी रावल बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते अमेरिका और यूरोप के देशों में बर्फबारी ज्यादा होने लगी है। पहले जहां छह से 12 इंच तक बर्फबारी होती थी वहां अब कई फुट बर्फबारी देखी जा रही है। बर्फबारी के चलते सड़कें फिसलन भरी हो जाती हैं। इस दौरान यातायात बाधित ना हो और दुर्घटनाएं ना हों, इसके लिए जल्द से जल्द बर्फ को पिघलाना जरूरी होता है। बर्फ पिघलाने के लिए गुजरात के कच्छ से अमेरिका और यूरोप को भारी मात्रा में नमक भेजा जा रहा है। यही कारण है कि भारत का नमक निर्यात हर साल 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ रहा है।

दुनिया में और कहीं नहीं बनता ऐसा नमक

कच्छ के दो रण हैं। एक को लोग कच्छ के छोटे रण के नाम से जानते हैं और दूसरे को बड़े रण के तौर पर जाना जाता है। कच्छ स्मॉल स्केल सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चु भाई बताते हैं कि छोटे रण में एक खास नमक बनाया जाता है जिसे स्थानीय लोग बड़ागरा नमक के तौर पर जानते हैं। यह बड़े ढेले की तरह होता है। इस नमक की खासियत है कि यह काफी सख्त होता है और जल्दी गलता नहीं है। इसलिए पश्चिमी देशों में बर्फबारी के दौरान सड़कों और बिल्डिंगों से बर्फ हटाने के लिए इस नमक की मांग सबसे ज्यादा रहती है।

इस लिए पड़ती है नमक की जरूरत

सड़कों से बर्फ हटाने के लिए सोडियम क्लोराइड या अन्य केमिकल का उपयोग किया जाता है। नमक इस काम में बेहद कारगर साबित होता है। ISMA के अनुसार अमेरिका डीआइसिंग, यानी बर्फ गलाने के लिए पहले खराब क्वॉलिटी के नमक का इस्तेमाल करता था, लेकिन अब वह अच्छा नमक इस्तेमाल करने लगा है। कई बार तो वैक्यूम इवेपोरेटेड नमक का भी इस्तेमाल होता है जो उच्च क्वालिटी का होता है। गुजरात में कई कंपनियां यह नमक बना रही हैं। सामान्य तौर पर सितंबर से यूरोप और अमेरिका में भारतीय नमक की मांग बढ़ जाती है। सर्दियां आने के पहले नमक के निर्यात में काफी तेजी देखी जाती है।

गुजरात में बनने वाला नमक चीन के रास्ते यूरोप, अमेरिका और रूस पहुंचता है। रावल बताते हैं कि चीन अपने देश की खराब क्वालिटी वाला ज्यादातर नमक यूरोपीय देशों को निर्यात कर देता है और भारत से अच्छी गुणवत्ता वाला नमक आयात करता है। कच्छ से बड़ी मात्रा में नमक चीन को भेजा जाता है।

खाने में भी पसंद भारत का नमक

भारत की तुलना में अमेरिका और यूरोप में नमक की खपत काफी ज्यादा है। भारत में एक साल में प्रति व्यक्ति नमक की औसत खपत लगभग 6 किलो है, लेकिन अमेरिका और यूरोप में यह 30 से 35 किलो तक है। वहां लोग टेबल सॉल्ट के रूप में इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। ये वैक्यूम रिफाइंड नमक अच्छी क्वालिटी का होता है। नमक कारोबारी राजू ध्रुवे कहते हैं कि कुछ समय पहले तक दुनिया में ऑस्ट्रेलिया के नमक को सबसे अच्छा माना जाता था, लेकिन अब भारत के नमक की क्वालिटी दुनिया के किसी भी देश के नमक को टक्कर देती है।

शीशे के इस्तेमाल से भी बढ़ी नमक की मांग

शीशे की चमचमाती बिल्डिंग हो या महंगी गाड़ी में लगे शीशे, सभी को बनाने में नमक की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट में शीशे की मांग बढ़ने से भी नमक की मांग में भी काफी तेजी देखी गई है। दरअसल शीशा बनाने में कच्चे माल के तौर पर सोडा ऐश का इस्तेमाल होता है, जो नमक से ही बनता है। आने वाले दिनों में नमक की मांग और तेजी से बढ़ने की संभावना है।