नई दिल्ली, विवेक तिवारी। अगर आपका बच्चा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है और काफी दबाव महसूस करता है या आप उसकी भूलने की आदत से परेशान हैं, तो थोड़ा सतर्क हो जाएं। हो सकता है कि उसे आपकी मदद की जरूरत हो। हाल ही में देश के 425 मेडिकल कॉलेजों के 4,000 से अधिक मेडिकल छात्रों पर हुए एक अध्ययन में सामने आया कि पढ़ाई के दबाव के चलते छात्रों में एकाग्रता और याददाश्त पर असर पड़ता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पढ़ाई के दबाव के चलते मेडिकल के छात्रों की शॉर्ट टर्म मेमोरी के साथ ही दीर्घकालिक याददाश्त पर भी असर पड़ता है। छात्राओं की तुलना में छात्राें में मानसिक परेशानियां अधिक देखी गईं। शोधकर्ताओं के मुताबिक मेडिकल छात्रों की नियमित स्क्रीनिंग और जरूरत के मुताबिक थेरेपी या ट्रेनिंग देकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।

किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय, लखनऊ के शोधकर्ताओं की ओर से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि काफी संख्या में मेडिकल छात्र शैक्षणिक तनाव से जूझ रहे हैं। इसमें असफल होने का डर और शिक्षकों और अभिभावकों का दबाव चिंता का सबसे बड़ा कारण हैं। अधिकांश छात्रों ने पढ़ाई के तनाव को 5 में से 4 के औसत स्तर पर रेट किया, जो उनके प्रदर्शन और भविष्य के करियर के बारे में गंभीर चिंता को दर्शाता है। दूसरे वर्ष के छात्रों में तनाव का स्तर बहुत ज्यादा था। कई छात्रों ने कहा कि जैसे-जैसे वे मेडिकल स्कूल में आगे बढ़ रहे हैं, उनकी पढ़ाई का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिससे उनका तनाव भी बढ़ रहा है।

मानसिक तनाव फोकस को बिगाड़ता है

इस शोध में शामिल किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर और मनोचिकित्सक डॉ. बंदना गुप्ता कहती हैं कि हमने छात्रों में पढ़ाई के तनाव और एकाग्रता में कमी के बीच एक स्पष्ट संबंध देखा। उच्च तनाव स्तर वाले छात्रों ने बताया कि उन्हें अपने नियमित काम करने के दौरान ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होती है, विशेष रूप से शोर भरे वातावरण में या जटिल समस्याओं को हल करते समय। जब छात्रों के तनाव और ध्यान केंद्रित न कर पाने के आंकड़ों पर गौर किया गया तो पाया गया कि दोनों के बीच एक खास तरह का संबंध है। इसका अर्थ है कि जैसे-जैसे छात्रों का तनाव स्तर बढ़ता गया, उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती गई।

बढ़ते तनाव के साथ याददाश्त कम होती है

अध्ययन में छात्रों की याददाश्त के काम करने के तरीके की भी जाँच की गई। इसमें पाया गया कि उच्च तनाव के स्तर का संबंध गंभीर याददाश्त संबंधी समस्याओं से भी है। उच्च तनाव का अनुभव करने वाले छात्रों को नाम, चेहरे और यहाँ तक कि पिछली घटनाओं के बारे में याद रखने में समस्या होने की संभावना ज्यादा दिखी। ये याददाश्त की कमी अकादमिक विषय-वस्तु से परे भी थी, जो दैनिक कार्यों को प्रभावित करती थी। जैसे यह याद करना कि उन्होंने व्यक्तिगत सामान कहाँ रखा था, या उनकी किससे क्या बात हुई थी, या किसी को दिया हुआ अप्वाइंटमेंट भूल जाना। शोध से पता चला कि तनाव ने न केवल अल्पकालिक याददाश्त को कमज़ोर किया - जैसे कि परीक्षा के दौरान विवरण भूल जाना - बल्कि किसी सूचना को लम्बे समय तक याद करने की क्षमता को भी प्रभावित किया, जो मेडिकल छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है।

लिंग और पढ़ाई के वर्ष के आधार पर अंतर

इस शोध में लिंग और पढ़ाई के वर्ष के आधार पर याददाश्त और एकाग्रता पर अलग अलग प्रभाव देखा गया। छात्रों ने छात्राओं की तुलना में ज्यादा तनाव की बात कही। मेडिकल स्कूल के दूसरे वर्ष के छात्रों में तनाव का स्तर सबसे अधिक देखा गया। तीसरे वर्ष में छात्रों के बीच याददाश्त से संबंधी समस्याएँ विशेष रूप से स्पष्ट थीं, जबकि पहले वर्ष के छात्रों ने आम तौर पर कम समस्याओं की बात कही। इन भिन्नताओं के बावजूद, लगातार यही बात सामने आई कि तनाव छात्रों की ध्यान केंद्रित करने और जानकारी को याद रखने की क्षमता पर भारी पड़ता है।

मानसिक तनाव बढ़ाता है कई बीमारियां

आगरा के वरिष्ठ सर्जन डॉक्टर समीर कुमार कहते हैं कि कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज काफी मानसिक तनाव में रहता है। मानसिक तनाव इंसान के शरीर से कई तरह से प्रभावित करती है। इसके चलते जहां दिल पर काफी दबाव पड़ता है। अगर किसी मरीज में मधुमेय की बीमारी है तो उसके बढ़ने का खतरा रहता है। ऐसे में ज्यादा चिंता करने या मानसिक दबाव के चलते मरीज की रिकवरी काफी धीरी हो जाती है। इसी के चलते जिन मरीजों का कैंसर का इलाज होता है उन्हें व्यायाम करने, मेडिटेशन करने, डीप ब्रीदिंग सहित अच्छा और पाष्टिक खाना खाने की सलाह दी जाती है। कैंसर पर मानसिक तनाव किस तरह काम करता है इसपर अभी काफी अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

मेडिकल कॉलेजों में नियमित स्क्रीनिंग की जरूरत

केजीएमयू के डॉक्टर विभोर अग्रवाल कहते हैं कि छात्रों में पढ़ाई के तनाव के स्तर को देखते हुए ये जरूरी हो जाता है कि उनमें तनाव की नियमित स्क्रीनिंग की जाए। जिन छात्रों के व्यवहार में किसी भी तरह का बदलाव दिखता है उनका विशेष तौर पर ध्यान रखा जाए। छात्रों की स्क्रीनिंग के जरिए उनके मानसिक स्वास्थ्य का पता लगाना आसान है। मेडिकल कॉलेजों में कई विशेषज्ञ होते हैं जो ये काम आसानी से कर सकते हैं। कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी, मांडफुलनेस एक्टिविटी या अटेंशन ट्रेनिंग के जरिए छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। अगर किसी सामान्य व्यक्ति को भी नकारात्मक विचार आते हैं तो उसे बार बार यह सोचना चाहिए कि ये विचार उसे क्यों आए। उसे किसी ऐसे विषय के बारे में सोचना चाहिए जिससे उसे बेहतर महसूस हो।