धर्मकीर्ति जोशी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गुरुवार को पेश किए गए अंतरिम बजट को देखकर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता कि सरकार ने पूर्ण बजट और अंतरिम बजट के बीच की महीन रेखा को मिटाने का प्रयास किया। अंतरिम बजट अपनी प्रकृति के अनुरूप ही रहा। चुनावी साल होने के बावजूद सरकार ने किसी भी प्रकार की बड़ी लोकलुभावन घोषणा या ऐसे कोई भावी संकेत देने से परहेज किया।

सरकार ने एक प्रकार से राजनीतिक जोखिम लेते हुए वित्तीय अनुशासन का परिचय दिया। यदि एक पंक्ति में व्याख्या की जाए तो चुनावी लोकलुभावनवाद से मुक्त यह अंतरिम बजट महंगाई के दबाव को नियंत्रित करते हुए दीर्घकालिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने वाला है। कुछ वैश्विक एवं घरेलू कारणों से महंगाई का जो दबाव अभी भी बना हुआ है, उसका अंतरिम बजट में ध्यान रखा गया है। साथ ही उत्पादकता को बढ़ाने वाले ऐसे कई प्रविधान किए गए हैं, जो दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि को आवश्यक गति प्रदान करने में सक्षम एवं प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।

आर्थिक मोर्चे पर इस समय कायम तमाम चुनौतियों के बावजूद सरकार अपने खजाने की सेहत दुरुस्त रखने में सफल रही है। बजट अनुमान में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.9 प्रतिशत के दायरे में रखने का लक्ष्य तय किया गया था, जो संशोधित अनुमान में 5.8 प्रतिशत रहा। अगले वित्त वर्ष के लिए वित्त मंत्री ने इसे जीडीपी के 5.1 प्रतिशत रखने का लक्ष्य तय किया है, जो दर्शाता है कि सरकार राजकोषीय अनुशासन के साथ कोई समझौता नहीं कर रही।

यहां यह और भी सराहनीय पहलू है कि सरकार ने पूंजीगत व्यय में कटौती किए बिना ही घाटे को घटाने में सफलता हासिल की है और आगे भी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी का रुझान कायम रखने की प्रतिबद्धता दिखाई है। स्पष्ट है कि सरकार ने एक प्रकार के अनुत्पादक राजस्व व्यय को घटाकर ही घाटे पर अंकुश लगाया है।

सरकारी खजाने की बेहतर स्थिति में कर राजस्व में आ रही निरंतर तेजी का भी अहम योगदान रहा। चालू वित्त वर्ष में सरकार को अनुमान से 76,000 करोड़ रुपये का अधिक कर राजस्व मिला है। उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष के लिए नामिनल यानी अनुमानित जीडीपी की वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत आंकी गई थी, लेकिन यह 8.9 प्रतिशत रही। यानी नामिनल जीडीपी में संकुचन के बावजूद कर संग्रह ने रफ्तार पकड़ी है तो यह बड़ी उपलब्धि गिनी जाएगी।

करों के स्तर पर वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में तो पहले से ही तेजी का रुख बना हुआ है, लेकिन कर राजस्व में बढ़ोतरी में प्रत्यक्ष करों का भी भारी योगदान रहा। जीएसटी के चलते जहां कर व्यवस्था कई मायनों में सुसंगत हुई है तो कर चोरी एवं रिसाव को रोकने के कई रास्ते बंद होने का असर भी कर संग्रह पर स्पष्ट दिख रहा है। डिजिटलीकरण के स्तर पर हो रहे व्यापक प्रयासों ने भी अपना प्रभाव दिखाया है।

वित्तीय रूप से अनुशासित रहते हुए भी सरकार ने कल्याणकारी राज्य की भूमिका के साथ न्याय करने का पूरा प्रयास किया है। इस समय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुस्ती किसी से छिपी नहीं है। उसे मुश्किल से उबारने के लिए सरकार ने सीधे किसी प्रकार की मदद या रेवड़ी देने के बजाय तार्किक रूप से संसाधन आवंटित किए हैं। इस मोर्चे पर किसी प्रकार की सीधी मदद से अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीतिक दबाव उत्पन्न होने का जोखिम बढ़ता। ऐसे में सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और मनरेगा जैसी उन योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाया है, जिनसे उत्पादक कार्यों को प्रोत्साहन मिलने के साथ ही रोजगार सृजन भी होगा। इससे ग्रामीण आर्थिकी को बड़ी राहत मिलेगी।

इसी प्रकार शहरी मध्य वर्ग को सीधी राहत भले ही न दी गई हो, लेकिन आवास योजना का दायरा बढ़ाकर शहर में आशियाने के लोगों के सपने को परवान चढ़ाया है। शहरों में बड़ी संख्या में किराये के घर में रहने वाले लोगों के लिए यह महत्वाकांक्षी योजना है। अंतरिम बजट के माध्यम से सरकार ने दर्शाया है कि उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वह किस हद तक कमर कसे हुए है। चूंकि भविष्य अब तकनीक आधारित और नवाचार केंद्रित उद्यमों का है तो उस दृष्टिकोण से शोध एवं विकास यानी आरएंडडी के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कोष की पहल बहुत सराहनीय कदम है। इससे जहां युवाओं की ऊर्जा का अपेक्षित रूप से उपयोग होगा तो उद्यमिता के नए आयाम स्थापित होने की संभावना है।

अनिश्चित अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य ने इस समय आर्थिक अनिश्चितताओं को बढ़ाया हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के थमने के कोई आसार नहीं दिख रहे थे कि पश्चिम एशिया में इजरायल और हमास के बीच संघर्ष का नया मोर्चा खुल गया। अब लाल सागर में तनाव भड़का हुआ है। इसने वैश्विक आपूर्ति शृंखला के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। ऐसे मुश्किल समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर बनी हुई है।

अंतरिम बजट के संकेत यही दर्शाते हैं कि सरकार वित्तीय अनुशासन का कड़ाई से पालन करने को प्रतिबद्ध है तो आर्थिक मोर्चे पर किसी बड़ी फिसलन की आशंका नहीं दिख रही। ऐसे में आगामी वित्त वर्ष में हमारा अनुमान है कि जीडीपी 6.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने में सफल रहेगी।

मौजूदा परिदृश्य में यह ठीकठाक वृद्धि कही जाएगी। चूंकि यह अंतरिम बजट ही था तो सरकार ने नीतिगत मोर्चे पर बड़े कदम नहीं उठाए, लेकिन ऐसे कुछ संकेत दिए हैं कि यदि वह फिर से सत्ता में आती है तो जुलाई में आने वाले पूर्ण बजट की तस्वीर किस तरह की होगी। जुलाई में आने वाले पूर्ण बजट में कुछ ऐसे सुधारों के आकार लेने की संभावना दिख रही है, जो निजी निवेश को गति देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं।

अंतरिम बजट का समग्रता में आकलन करें तो वित्त मंत्री ने मुश्किल माहौल में प्रभावी संतुलन साधने का काम किया है। चुनावी साल होने के बावजूद मुफ्त रेवड़ियों और लोकलुभावनवाद का मोह नहीं किया। ऐसे कोई कदम नहीं उठाए, जिनसे महंगाई के पहले से कायम दबाव को और ताकत मिले। कुल मिलाकर, वर्तमान परिस्थितियों में यह एक व्यावहारिक अंतरिम बजट है, जिसके लिए वित्त मंत्री सराहना की पात्र हैं।

(लेखक क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री हैं)