इजरायल की ओर से लेबनान में हिजबुल्ला के सरगना नसरुल्ला को मार गिराए जाने के बाद ईरान ने जिस तरह उस पर मिसाइलें दागीं, उसके बाद पश्चिम एशिया के हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं। इसलिए और भी, क्योंकि इजरायल ने दो टूक कहा है कि ईरान को मिसाइल हमले के नतीजे भुगतने होंगे। इजरायल केवल ईरान पर ही हमले की तैयारी नहीं कर रहा है। उसने लेबनान में हिजबुल्ला को सबक सिखाने के लिए अपनी सेनाएं भेज दी हैं और वह सीरिया में अपने शत्रुओं पर हमला करने के साथ यमन में हाउती लड़ाकों को भी निशाना बना रहा है।

हमास, हिजबुल्ला और हाउती वे संगठन हैं, जिन्हें ईरान हर तरह का सहयोग और समर्थन देता है। पश्चिम एशिया में अशांति केवल इसलिए नहीं है कि इजरायल फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं। इस अशांति का एक बड़ा कारण ईरान भी है, जो इजरायल का समूल नाश करने की अपनी सनक से ग्रस्त है। ईरान की तरह कतर भी इजरायल विरोधी संगठनों की मदद करता है। ये दोनों देश ऐसा इसलिए भी करते हैं, ताकि खुद को इस्लामी जगत का अगुआ साबित कर सकें।

इजरायल और अन्य इस्लामी देशों के बीच दुश्मनी और युद्ध का एक लंबा इतिहास है। इसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं, लेकिन मौजूदा अशांति का मूल कारण एक साल पहले सात अक्टूबर को गाजा आधारित आतंकी संगठन हमास की ओर से इजरायल में किया गया बर्बर हमला रहा। इस भीषण हमले में 12 सौ से अधिक इजरायली नागरिक मारे गए थे। इस हमले के दौरान हमास के आतंकी दो सौ से अधिक इजरायलियों को बंधक बनाकर गाजा ले आए थे। हमास ने इन बंधकों को रिहाकर कोई समझौता करने से इन्कार करके गाजा में अपने लोगों को एक तरह से जानबूझकर मरवाने का ही काम किया।

इजरायल ने हमास को तबाह करने की कोशिश में गाजा में जो भीषण हमले किए, उनमें हजारों फलस्तीनी मारे जा चुके हैं। यह सही है कि इजरायल हमेशा ही ईंट का जवाब पत्थर से देता है, लेकिन शायद हर वह देश ऐसा ही करेगा, जिसे अपने अस्तित्व पर संकट नजर आएगा। यदि यह अपेक्षा की जा रही है कि इजरायल संयम बरते और हमास, हिजबुल्ला जैसे संगठनों को सैन्य शक्ति के बल पर मिटाने की जिद छोड़े तो ईरान और अन्य इस्लामी देशों से भी यही अपेक्षित है कि वे इजरायल का नामो निशान मिटाने की मानसिकता का परित्याग करें। वास्तव में इसी मानसिकता के चलते अमेरिका और कुछ अन्य देश हर हाल में इजरायल का साथ देने की नीति पर चलते हैं। चूंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद असहाय और अक्षम है, इसलिए पश्चिम एशिया में सुलह-समझौते के आसार नहीं दिखते। यदि वहां हालात और खराब होते हैं तो इससे विश्व शांति के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था भी खतरे में पड़ेगी, जो यूक्रेन युद्ध के चलते पहले से ही संकट में है।