अवधेश कुमार। वर्ष 2014 के बाद पहली बार भाजपा के सामने अपनी रीति-नीति, आचार-विचार को लेकर आत्ममंथन और उसके अनुसार सुधार करने की स्थिति आई है। यदि चुनौतियों का आकलन कर सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो आगे खतरे ज्यादा हैं। गठबंधन पर निर्भर सरकार चलाने की स्थिति इस कारण चुनौती है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी कठोर फैसले लेते रहे हैं। अब साथी दलों को संभालने का भी काम करना होगा। दूसरे, जिन राज्यों में भाजपा को धक्का लगा है, उनमें जनाधार वापस लाने और विपक्ष के दुष्प्रचार की काट भी बड़ी चुनौती है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के बाद आम धारणा यह बन रही थी कि इस भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर पराजित करना संभव नहीं है। इस धारणा को जबरदस्त धक्का पहुंचा है।

स्वाभाविक ही अब शक्तिशाली विपक्ष ज्यादा हमलावर होगा, जिसका सफलतापूर्वक सामना करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को लेकर विरोधियों के वक्तव्यों का इसलिए अर्थ नहीं हैं, क्योंकि इनमें ज्यादातर बातें लंबे समय से कही जा रही हैं। भाजपा, उसके नेताओं, संघ परिवार आदि को लेकर विरोधियों द्वारा बनाए गए नैरेटिव वर्षों से सामने हैं। जो आरोप चुनाव पूर्व लगाए जा रहे थे, वही आज भी दोहराए जा रहे हैं। इसके बावजूद भाजपा जीतती रही। इसलिए स्थितियों का विश्लेषण भाजपा के दृष्टिकोण से ही किया जा सकता है।

बहुमत से पीछे रह जाना भाजपा के लिए बड़ा आघात है, किंतु जनादेश राजग के शासन का ही है। विपक्षी नेता अपने अनुसार इसका मूल्यांकन करें, लेकिन उनके लिए भी यह मंथन का विषय होना चाहिए कि इतने प्रचार-दुष्प्रचार के बावजूद 10 वर्षों के शासन के विरुद्ध इतना जनमत पैदा नहीं कर सके कि लोग सरकार उखाड़ फेंक दें। यह स्थिति क्यों आई कि भाजपा को सरकार चलाने के लिए साथी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा? 500 वर्षों बाद राम मंदिर के निर्माण पर समूचे देश और विश्व भर के हिंदुओं ने उत्सव मनाया, फिर भी यदि भाजपा उत्तर प्रदेश में ही दूसरे स्थान पर रह गई और अयोध्या से उसके उम्मीदवार हार गए तो यह सामान्य घटना नहीं है।

यदि इस पर विचार करें कि कोई भाजपा कार्यकर्ता या प्रतिबद्ध समर्थक क्यों बनता है या उसे क्यों वोट देता है तो सही निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है। मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग परिस्थितियों अनुसार पक्ष-विपक्ष में जाता है। भाजपा एक ऐसी पार्टी है, जिसका विचारधारा के आधार पर एक ठोस मताधार कायम हो चुका है। उसके कार्यकर्ताओं और प्रतिबद्ध समर्थक त्याग करते हुए भी उसके लिए काम करते हैं। अगर भाजपा सरकारें, मंत्री, नेता अपने कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो उन्हें धक्का लगता है। इस बार उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं और प्रतिबद्ध समर्थकों का एक वर्ग असंतुष्ट था।

ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार और राज्य की भाजपा सरकारों ने विचारधारा के अनुरूप कार्यकर्ताओं, समर्थकों को संतुष्ट करने वाले काम नहीं किए। वे किए और इसीलिए परिणाम मिश्रित दिखते हैं, लेकिन नेताओं और उम्मीदवारों में प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिछाया दिखनी चाहिए। गठबंधन के पीछे भी वैचारिक तार्किकता दिखनी चाहिए। बाहरी या ऐसे उम्मीदवार, जो कार्यकर्ताओं, समर्थकों की कसौटियों पर खरे नहीं उतरे, उनमें से अनेक हारे या कम वोटों से जीते।

कुछ गठबंधन लोगों को स्वीकार नहीं हुए, क्योंकि वे भाजपा की कसौटियों के अनुरूप नहीं रहे। भाजपा आरक्षण खत्म कर देगी, संविधान समाप्त कर देगी, मोदी केवल कुछ पूंजीपतियों के दोस्त हैं, दलित-पिछड़ा विरोधी हैं, जैसे नैरेटिव बनाने में विपक्ष एक सीमा तक सफल रहा और यदि इसका कुछ हद तक मतदान पर असर पड़ा तो इसीलिए कि भाजपा इन झूठे नैरेटिव का करारा प्रतिकार नहीं कर सकी, जबकि 2014 और 2019 में भी ऐसे नैरेटिव थे, जिनका मुखरता से प्रतिकार किया गया।

इस बार भाजपा के कई नारे-मुद्दे उठे, जो कुछ ही दिनों में खत्म हो गए। इस बार यह दिख रहा था कि नीति निर्माण के संदर्भ में निष्ठावान समर्थकों, नेताओं, कार्यकर्ताओं-सबकी भूमिका कम हो रही थी। वे हाशिए पर गए और ऐसे लोग सामने दिखने लगे, जिनकी प्रतिबद्धता विचार, संगठन या कार्यकर्ताओं के प्रति नहीं थी। यह भी धारणा बनी कि मोदी के रहते बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि लोग उनके नाम पर वोट दे ही देंगे। इस कारण पार्टी की भूमिका सरकार के संदेशवाहक जैसी बनती गई।

बाहर से आए लोगों में कुछ अच्छे भी हैं, लेकिन अनेक ऐसे भी रहे, जिनके लिए पार्टी और कार्यकर्ताओं के कोई मायने नहीं थे। आम कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे काम या योग्य व्यक्तियों को उनके अनुरूप भूमिका मिलना कठिन हो गया। लोगों को अपनी ही सरकार में सही काम कराने के लिए संघर्ष करना पड़ा। ऐसे लोगों को भी टिकट दिए गए, जिनसे भाजपा नेता, कार्यकर्ता और समर्थक ही नहीं, बल्कि आम वोटर भी सहमत नहीं थे। यदि इन कारणों से कार्यकर्ता उदासीन हो तो वह विरोधियों के दुष्प्रचार का सामना करने की जगह यह सोचता है कि जो पार्टी और सत्ता पर हावी हैं, वही यह काम करें। वह या तो शांत बैठता है या प्रतिशोध के भाव में काम करता है। यही इस चुनाव में हुआ।

अगर भाजपा में विचार, व्यक्तित्व और व्यवहार को लेकर व्यापक आंतरिक सुधार हो जाए तो सरकार का चाल, चरित्र और चेहरा ठीक रहेगा, विरोधियों का मुकाबला आसान होगा, गठबंधन सरकार का प्रबंध ठीक होगा तथा भविष्य में बहुमत पाने का आधार बनेगा, क्योंकि वह स्थायी रूप से खत्म नहीं हुआ। इसमें आरएसएस को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)