जीएन वाजपेयी। आम बजट अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को उम्मीद की किरण दिखाने वाला है। समग्र दृष्टि से परिपूर्ण वृद्धि पर केंद्रित यह एक भविष्योन्मुखी बजट है। रोजगार को बढ़ाने वाला है। फिर भी न्यायिक सुधार एवं पुलिस सुधार जैसे मुद्दों की अनदेखी रह गई। इससे व्यापार एवं जीवन की सुगमता से जुड़े सुधारों से मिलने वाले व्यापक लाभ पर आघात की आशंका दिखती है। बजट पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक रूप से वैसी ही रहीं जैसी हर साल रहती हैं। बजट का वास्तविक आकलन तभी संभव है जब उसे खांटी राजनीतिक दृष्टि के बजाय समग्रता में देखा जाए। इस लिहाज से बजट में कुछ ¨बदु प्रमुखता से उभरते हुए दिखेंगे।

पहला तो यही कि यह बजट भविष्योन्मुखी है। सूचना प्रौद्योगिकी, ड्रोन, एआइ, ब्लाकचेन, डिजिटल करेंसी जैसे कई उभरते चमकदार क्षेत्रों पर जोर यही दर्शाता है। स्वच्छ ऊर्जा पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। ई-गवर्नेस में निवेश बढ़ाने से जीवन गुणवत्ता सुधरने के साथ ही डिजिटल डिवाइड की खाई भी भरेगी। संचार, विनिर्माण, व्यापार, वितरण मनोरंजन से लेकर कृषि और प्रतिरक्षा तंत्र में तकनीक से लाभ उठाने की योजना बनाई गई है। इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर को लेकर प्रयोगधर्मिता और विदेशी विश्वविद्यालयों के संचालन को मंच प्रदान करने के फैसले भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में मददगार होंगे। ये कुछ ऐसे कदम हैं, जिनमें भविष्य की अर्थव्यवस्था को गढ़ने एवं उसे संवारने की पर्याप्त क्षमताएं हैं।

बजट हालिया परिस्थितियों को देखते हुए पटरी पर लौट रही आर्थिक गतिविधियों को सहारा देता है। इसमें एमएसएमई से लेकर आतिथ्य सत्कार से जुड़े उद्योगों में निवेश बढ़ाने के उपाय हैं। इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम को आगे बढ़ाया गया है। गति शक्ति मिशन पर गंभीरता से ध्यान दिया गया है। इन कदमों से वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग बढ़ेगी। आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी लागत घटने और इन्वेंट्री यानी भंडारण प्रबंधन में भी सुधार होगा। स्टार्टअप्स, वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी के लिए सुगम की गई राह नवाचार को बढ़ाने एवं वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी उत्पादों एवं सेवाओं के विकास को गति प्रदान करेगी।

पूंजीगत व्यय में 35 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी कर आवंटन को 7.5 लाख करोड़ रुपये करने से सरकार ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि उसका लक्ष्य तेज आर्थिक वृद्धि है। साथ ही राज्यों को भी एक लाख करोड़ के ब्याज मुक्त ऋण का प्रविधान किया है। इससे निजी निवेश को भी प्रोत्साहन मिलेगा। ऊंची जीडीपी वृद्धि के लिए बड़े स्तर पर निवेश भी जरूरी है। सार्वजनिक-निजी निवेश की दोहरी शक्ति में अर्थव्यवस्था को निरंतर सात से आठ प्रतिशत की सतत वृद्धि के चक्र में दाखिल कराने की क्षमता है। कुछ प्रयासों से बैंकों और निजी क्षेत्र के बहीखाते दुरुस्त हुए हैं। इससे पूंजीगत व्यय को नए सिरे से आगे बढ़ाने में प्राप्त हुई क्षमताओं के बावजूद कुछ हिचक कायम है। ऐसे में सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय बढ़ाने से उनका हौसला जरूर बढ़ेगा।

रोजगार का मुद्दा अभी बहुत चुनौतीपूर्ण है। कृषि के बाद कंस्ट्रक्शन यानी निर्माण, बुनियादी ढांचा और विनिर्माण रोजगार प्रदान करने वाले तीन सबसे बड़े क्षेत्र हैं। बजट में सस्ती दरों पर वित्त की व्यवस्था और किफायती मकानों के लिए आवंटन बढ़ाकर कंस्ट्रक्शन क्षेत्र को बड़ा सहारा दिया गया है। अकेले गति शक्ति मिशन में ही रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। सरकार ने गत वर्ष जो पीएलआइ योजना पेश की थी, उसने विनिर्माण क्षेत्र का कायाकल्प कर बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान किए हैं। अनुमान है कि अगले तीन वर्षो में इलेक्ट्रानिक विनिर्माण क्षेत्र का निर्यात 300 अरब डालर के आंकड़े को पार कर जाएगा। इससे एक करोड़ से अधिक नौकरियां बनेंगी।

महंगाई की चुनौती भी इस समय जीडीपी वृद्धि के लिए एक बड़ा जोखिम है। बढ़ती महंगाई आर्थिक वृद्धि से लाभान्वित हुए एक बड़े तबके के लाभ में सेंध लगा सकती है। यही कारण है कि वित्त मंत्री ने राजकोषीय अनुशासन को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराने के साथ ही राजस्व व्यय के बजाय कहीं अधिक उत्पादक पूंजीगत व्यय में वृद्धि को वरीयता दी। बजट प्रस्ताव पारदर्शिता और विश्वसनीयता को भी दर्शाते हैं। कर प्रक्रियाओं को सुगम बनाने एवं करदाताओं में विश्वास जताने की परिपाटी भी कायम रही। जैसे रिटर्न भरने के लिए मिली दो साल की मोहलत यही बताती है कि सरकार को करदाताओं पर पूरा भरोसा है।

एक ऐसे समय में जब सरकारी कमाई में तेजी दिख रही है तब मांग बढ़ाने और समाज के वंचित तबकों को सीधी राहत पहुंचाने के लिए खास उपायों के अभाव से जुड़ी आलोचना कुछ हद तक वाजिब लगती है। हालांकि इसमें यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अभी वैश्विक परिदृश्य डांवाडोल है। महामारी की विदाई नहीं हुई है, देशों में राष्ट्रवाद मुखर होने के साथ ही भू-राजनीतिक तनाव भी चिंता का सबब बना हुआ है। ऐसे में सरकार ने किसी भी आपदा से निपटने के लिए रक्षा कवच तैयार करने का विकल्प चुना।

कुछ और चुनौतियां भी मुंह बाएं खड़ी हैं। जैसे किसी अनुबंध के अमल में आने से जुड़ी विश्व के 180 से अधिक देशों की सूची में भारत 168वें स्थान पर है। भारत में किसी परियोजना को सिरे चढ़ाने में औसतन 1,200 से अधिक दिन लगते हैं और लागत मूल अनुबंध से 25 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ जाती है। इस देरी, लागत और न्याय के मोर्चे पर अभाव खटकता है। ये संकेत करते हैं कि न्यायिक तंत्र, नौकरशाही और पुलिस संबंधी सुधार अब अनिवार्य हो चले हैं। उनमें मामूली बदलाव या अपर्याप्त सुधार से काम नहीं चलेगा। इन संस्थानों को संवैधानिक गारंटी के अनुरूप फिर से गढ़ना होगा। जब तक ये उपाय नहीं किए जाएंगे तब तक कारोबारी एवं जीवन को सुगम बनाने के उपाय मूर्त रूप नहीं ले पाएंगे। अमृत काल में जब देश को उन्नति के उच्च पथ पर अग्रसर कर स्वतंत्रता की शताब्दी पूरी होने तक शिखर पर पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है तब बजट इन सुधारों की अनदेखी करता प्रतीत होता है। फिर भी समग्रता में देखा जाए तो वित्त मंत्री ने मुश्किल माहौल में संतुलित और शानदार बजट पेश किया है। 

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)