संजय गुप्त। मेडिकल कालेजों में प्रवेश की परीक्षा यानी नीट में अनियमितता को लेकर उठे सवाल अभी शांत भी नहीं हुए थे कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की ओर से कराई गई यूजीसी-नेट परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने का मामला सामने आ गया। चूंकि इस परीक्षा के प्रश्नपत्र इंटरनेट मीडिया में पाए गए, इसीलिए उसे रद करना पड़ा। इसके बाद एक और परीक्षा सीएसआइआर-नेट को उसके आयोजन के पहले इसलिए स्थगित करना पड़ा, क्योंकि उसमें भी गड़बड़ी की आशंका पाई गई। एनटीए की ओर से ही कराई जाने वाली इस परीक्षा में दो लाख छात्रों को बैठना था।

यूजीसी-नेट परीक्षा में नौ लाख से अधिक छात्र बैठे थे। अब उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी। आखिर उनके समय और संसाधन की जो बर्बादी हुई, उसकी भरपाई कैसे होगी? इस परीक्षा के प्रश्नपत्र के लीक होने की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई है, लेकिन इसके दोषी कब पकड़े जाएंगे और कब सजा दी जाएगी, यह एक बड़ा सवाल है। यह निराशाजनक है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक करने वाले गिरोह तो सशक्त होते जा रहे हैं, लेकिन उन पर लगाम लगाने वाले उपाय निष्प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। जिस तरह प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता भंग करने वाले बेलगाम हैं, उसी तरह नकल माफिया भी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि स्कूली और विश्वविद्यालय स्तर की परीक्षाओं में नकल का रोग बढ़ता जा रहा है। यह ठीक है कि नई शिक्षा नीति पर अमल किया जा रहा है, लेकिन कोई ठोस परीक्षा नीति क्यों नहीं बन पा रही है, जिससे स्कूली परीक्षाओं से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता कायम हो सके।

प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र इसलिए भी लीक होते हैं, क्योंकि उन्हें लीक कराने वालों को कठोर सजा का भय नहीं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि नीट का दोबारा आयोजन होता है या नहीं, लेकिन जब तक यह तय नहीं होता, तब तक करीब 24 लाख छात्र और उनके माता-पिता दुविधा में बने रहेंगे। पहले नीट, फिर यूजीसी-नेट और सीएसआइआर-नेट परीक्षा मामले ने एनटीए की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस संस्था का गठन इसीलिए किया गया था कि प्रतियोगी परीक्षाएं कराने में कोई गड़बड़ी न हो पाए और परीक्षाओं की विश्वसनीयता बनी रहे, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। जब प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी के चलते लाखों छात्रों को परेशानी उठानी पड़ती है तो उनका सरकार पर से भरोसा उठता है। प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाएं युवाओं में असंतोष उत्पन्न कर रही हैं। चूंकि ऐसी घटनाएं लगातार घट रही हैं, इसलिए उनका असंतोष बढ़ता जा रहा है। इस असंतोष का सामना सरकारों को करना पड़ता है। समस्या यह है कि सरकारें नौकरशाही को जवाबदेह नहीं बना पा रही हैं।

पिछले कुछ वर्षों से राज्यों और केंद्र की ओर से आयोजित शायद ही ऐसी कोई प्रतियोगी परीक्षा हो, जिसके प्रश्नपत्र लीक न हुए हों या फिर उनके परिणाम को लेकर संदेह न उठे हों। एक के बाद एक परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों के लीक होने पर राजनीतिक दल एक-दूसरे को कठघरे में तो खड़ा करते हैं, लेकिन इस मामले में सभी दलों और उनकी सरकारों का हाल एक जैसा है। करीब-करीब सभी राज्यों में प्रश्नपत्र लीक हो चुके हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एक कठोर कानून बना दिया है। कुछ राज्य सरकारें भी कठोर कानून बना रही हैं। ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन क्या केवल कठोर कानून प्रश्नपत्र लीक करने वालों के दुस्साहस का दमन करने में सक्षम होंगे?

यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि अभी तक जिन्होंने प्रश्नपत्र लीक करने-कराने का काम किया, उन्हें कोई कठोर सजा नहीं दी जा सकी है। प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र इसलिए लीक हो रहे हैं, क्योंकि उनका आयोजन कराने वाली संस्थाएं अपना काम पुराने तरीकों से करती हैं। प्रश्नपत्र लीक होने के मामले इसीलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि परीक्षाओं के आयोजन में बाहरी एजेंसियों की मदद ली जा रही है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इन एजेंसियों के लोग ही पैसा कमाने के लिए धांधली करते और कराते हैं। समझना कठिन है कि प्रतियोगी परीक्षाओं का संचालन बाहरी एजेंसियों की मदद से क्यों कराया जाता है और वह भी ठेके पर। जब तक ठेके पर परीक्षाएं कराई जाती रहेंगी, तब तक उनकी विश्वसनीयता भंग होती रहेगी।

प्रश्नपत्र लीक होने का एक बड़ा कारण उन्हें पहले से तैयार कर छापना और फिर उन्हें विभिन्न शहरों में भेजने की परिपाटी है। कई बार इसी प्रकिया में कहीं न कहीं सेंध लग जाती है। आखिर आज के इस तकनीकी युग में पुराने तौर-तरीकों से परीक्षाएं क्यों आयोजित की जाती हैं? ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि प्रश्नपत्रों को पहले से छापने और शहर-शहर भेजने के बजाय उन्हें परीक्षा होने कुछ घंटे पहले अंतिम रूप दिया जाए और फिर उन्हें सूचना तकनीक के जरिये संबंधित केंद्रों में भेजा जाए। परीक्षा शुरू होने से पहले परीक्षा केंद्रों में ही प्रश्नपत्र की प्रतियां निकालने की व्यवस्था की जाए तो परीक्षाओं में सेंध लगने से रोका जा सकता है। नि:संदेह परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि समस्त प्रतियोगी परीक्षाएं कंप्यूटर के जरिये कराई जाएं। आज जब भारत डिजिटल क्रांति का अगुआ है, तब सभी प्रतियोगी परीक्षाएं कंप्यूटर से क्यों नहीं हो सकतीं? आज पेन-कापी के जरिये प्रतियोगी परीक्षाएं लेने का क्या औचित्य? प्रश्न यह भी है कि प्रश्नपत्रों के कई सेट क्यों नहीं बनाए जाते, ताकि यदि कहीं कोई प्रश्नपत्र लीक भी हो जाए तो प्रदेश या देश भर में परीक्षाएं रद न करनी पड़ें।

परीक्षाओं को विश्वसनीय बनाने में सफलता इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि आवश्यक इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दिया जा रहा है। आखिर प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करने वाली संस्थाएं संघ लोक सेवा आयोग से कोई सीख लेने को क्यों नहीं तैयार हैं? संघ लोक सेवा आयोग प्रतिवर्ष लाखों छात्रों की परीक्षा लेता है। यदि यह आयोग अपनी परीक्षाओं की शुचिता, विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा बनाए रखने में सक्षम है तो फिर एनटीए या इस जैसी अन्य संस्थाएं क्यों नहीं हैं? यह वह प्रश्न है, जिस पर राज्यों और केंद्र के नीति-नियंताओं को विचार करना चाहिए।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]