हर्ष वी. पंत। इस दौर को यदि भारत-बांग्लादेश संबंधों का स्वर्णिम काल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के कुछ दिन बाद ही बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के दौरे पर आईं। नई सरकार के कार्यकाल में यह किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष का पहला भारत दौरा है।

यह दर्शाता है कि बीते दस वर्षों के दौरान दिल्ली और ढाका के रिश्ते कितने मधुर एवं सहज हुए हैं और कई बार मुश्किल परिस्थितियों की आंच भी उन पर नहीं पड़ी। तीस्ता जल समझौते की ही मिसाल लें तो जहां मोदी को बंगाल सरकार के विरोध से जूझना पड़ा, वहीं बांग्लादेश में हसीना को भारत-विरोधी तत्वों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद दोनों नेताओं ने अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने पर जोर दिया, जो न केवल द्विपक्षीय, बल्कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस वर्ष जनवरी में जब शेख हसीना फिर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने अपने पहले विदेशी दौरे के लिए भारत को चुना। तब उन्होंने कहा था, ‘भारत हमारा एक प्रमुख पड़ोसी, भरोसेमंद साथी और क्षेत्रीय साझेदार है। भारत-बांग्लादेश रिश्ते बहुत तेजी से मजबूत हो रहे हैं।’ उनके हालिया दौरे की महत्ता को प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह कहकर बखूबी रेखांकित किया कि ‘वह हमारी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पहली विदेशी मेहमान हैं।’

इस दौरे पर दोनों नेताओं के बीच दस सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए। ये एमओयू डिजिटल एवं हरित साझेदारी से लेकर सामुद्रिक सहयोग और सबसे उल्लेखनीय भारत-बांग्लादेश रेल कनेक्टिविटी का साझा दृष्टिकोण जैसे विविधतापूर्ण विषयों पर केंद्रित रहे। साझा बयान भी कनेक्टिविटी, व्यापार और सहयोग भाव पर केंद्रित शांति, समृद्धि एवं विकास को समर्पित रहा।

द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम प्रदान करने के लिए कुछ नई पहल भी की गई हैं। जैसे बांग्लादेश से इलाज के लिए भारत आने वाले मरीजों को ई-वीजा, नई रेल एवं बस सेवा, गंगा जल समझौते के लिए संयुक्त तकनीकी समिति, तीस्ता नदी के संरक्षण एवं प्रबंधन से जुड़ी एक बड़ी परियोजना के लिए एक भारतीय तकनीकी टीम को बांग्लादेश भेजना, नेपाल से भारतीय ग्रिड के जरिये 40 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को पहुंचाने के साथ ही बांग्लादेशी पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण जैसी पहल शामिल हैं। बांग्लादेश की सामरिक क्षमताओं में बढ़ोतरी की संभावनाएं तलाशना भी एक मुद्दा रहा। इसमें बांग्लादेशी सुरक्षा बलों के आधुनिकीकरण के साथ ही रक्षा औद्योगिक उत्पादन में सहयोग पर चर्चा हुई।

शेख हसीना जुलाई में चीन का दौरा करेंगी। उससे पहले उनका हालिया भारत दौरा द्विपक्षीय संबंधों में आ रही परिपक्वता का भी परिचायक रहा कि दोनों देश अन्य राष्ट्रों के साथ अपने रिश्तों को बढ़ाने के साथ ही एक-दूसरे के साथ बहुत निकटता से काम कर रहे हैं। नई दिल्ली ने कभी ढाका को बीजिंग के साथ सक्रियता बढ़ाने से नहीं रोका, लेकिन चीन को लेकर भारत की कुछ चिंताएं जरूर रही हैं, जिनका हसीना ने हमेशा ख्याल रखा है।

वर्ष 2020 से ही चीन तीस्ता नदी से जुड़ी विकास परियोजना में एक अरब डालर के निवेश की इच्छा जता रहा है और गत वर्ष उसने एक औपचारिक प्रस्ताव भी दिया। बांग्लादेश के लिए यह लंबे समय से चली आ रही प्राथमिकता है और मनमोहन सिंह की सरकार ने 2011 में इस संदर्भ में एक समझौता भी किया था, लेकिन वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के चलते सिरे नहीं चढ़ पाया था।

उधर चीन बार-बार प्रस्ताव दे रहा था और भारत की ओर से हीलाहवाली के चलते हसीना राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर थीं। ऐसे में चीन जाने से पहले उनके भारत दौरे से नई दिल्ली को इस मोर्चे पर नए सिरे से पहल करने का अवसर मिला। तीस्ता नदी के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए भारतीय तकनीकी टीम को बांग्लादेश भेजने का निर्णय यही संकेत करता है कि कुछ घरेलू चुनौतियों के बावजूद वह पड़ोसी देशों में अपने रणनीतिक हितों को तिलांजलि नहीं देगा।

इसी प्रकार, 1996 में हुए गंगा जल समझौते के नवीनीकरण के लिए तकनीकी वार्ता का निर्णय भी बांग्लादेश को समय पर आश्वस्त करने वाला है, क्योंकि यह मुद्दा हसीना सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल है। भारत के लिए बांग्लादेश की अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित होना चाहता है और बंगाल की खाड़ी की भूमिका उसके एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में होगी।

वहीं, बांग्लादेश के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख आर्थिक एवं सामरिक केंद्र के रूप में अपनी संभावनाओं को भुनाना है तो उसके लिए भारत से साझेदारी बेहद महत्वपूर्ण होगी। चूंकि दोनों ही देश अपने रणनीतिक नजरियों को लेकर बहुत महत्वाकांक्षी हैं तो उनके व्यवहार को आकार देने में द्विपक्षीय साझेदारी निरंतर रूप से अहम बनी रहेगी। नि:संदेह, चीन इसमें एक अहम किरदार बना रहेगा, लेकिन उसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर नहीं पेश किया जाना चाहिए।

भारत-बांग्लादेश के संबंध अपने हितों एवं समझ के आधार पर सशक्त हो रहे हैं। उनकी अपनी उपयोगिता एवं अहमियत है। इसी महत्ता को समझते हुए मोदी और हसीना ने अपने-अपने देशों की जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए ठोस कदम उठाना सुनिश्चित किया है। पड़ोसी देशों के बीच किस प्रकार की आदर्श साझेदारी होनी चाहिए, उसे इन दोनों नेताओं ने पुन: परिभाषित किया है। परस्पर सम्मान, परस्पर हित और परस्पर संवेदनशीलता ने इस साझेदारी को अन्य देशों के लिए एक अनुकरणीय आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)