प्रमोद भार्गव। गगयनयान वायु सेना के तीन अधिकारियों के साथ चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए 2022 में उड़ान भरेगा। यह मानव मिशन रूस और फ्रांस की साझेदारी से पूरा होगा। भारतीय अधिकारियों को यही देश प्रशिक्षित करेंगे। अंतरिक्ष की उड़ानें किसी भी देश के लिए इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि देश के महाशक्ति बनने के द्वार इन्हीं उड़ानों या अन्य वैज्ञानिक उपलब्धियों से खुलते हैं। ये मिशन आमदनी का भी जरिया बन रहे हैं। हमारे वैज्ञानिक चंद्रयान-2 की असफलता के बाद भी निराश नहीं हुए और उन्होंने चंद्रमा व मंगल के अलावा अन्य ग्रहों के भी खगोलीय रहस्यों को टटोलने की योजनाएं बना ली है।

अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके है। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। वह रूस के अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष गए थे। भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष जा चुकी हैं। इसरो द्वारा अंतरिक्ष में मानवरहित व मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानव रहित यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानव युक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा।

यह सावधानी इसलिए बरती जा रही है, क्योंकि अमेरिकी मानव मिशन की असफलता के चलते भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की जान चली गई थी। यदि भारत इस मिशन में कामयाबी हासिल कर लेता है तो ऐसा करने वाला वह दुनिया का वह चौथा देश हो जाएगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपने मानवयुक्त यान भेजने में सफलता पाई है। रूस ने 12 अप्रैल 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। अमेरिका ने पांच मई 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। चीन ने 15 अक्टूबर 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने की कामयाबी हासिल की थी। भारत ने अब अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने की पहल कर दी है। हालांकि अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यानों को भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और आशंकाओं से भरी होती है।

यदि अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या गति का संतुलन थोड़ा सा ही लड़खड़ा जाए तो कोई भी अंतरिक्ष अभियान ध्वस्त हो जाता है, या फिर अंतरिक्ष में कहीं भटक जाता है। इसे नियंत्रित करके दोबारा लक्ष्य पर लाना मुश्किल होता है। इसीलिए भारत पहले दो गगनयान अभियान मानवरहित भेजेगा। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन और हवा देकर जीवित रखा जा सकता है। इसीलिए वायुसेना के चार पायलटों को अंतरिक्ष यात्रा का अवसर दिया जा रहा है, क्योंकि इनमें अंतरिक्ष में पहुंच वापस आने की ज्यादा क्षमता होती है। इन पायलटों का बेंगलुरु में वायुसेना के इंडियन एविएशन मेडिसिन में स्वस्थ परीक्षण हो चुका है। इनमें से तीन पायलट एक सप्ताह के लिए अंतरिक्ष में स्थित पृथ्वी की धुरी पर चक्कर लगाएंगे। इस दौरान वे पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण की सूक्ष्मता (माइक्रो ग्रेविटी) एवं जैविक विज्ञान का अध्ययन करेंगे।

बहरहाल अंतरिक्ष में भारतीय मानव मिशन के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर आदमी भेजने का रास्ता खुलेगा। इन पर बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद होगी। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष पर्यटन की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है। यह अभियान अंतरिक्ष शोधकार्यो को बढ़ावा देगा। भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई प्रोद्यौगिकी तैयार करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों का तो यहां तक दावा है कि दवा, कृषि, औद्योगिक सुरक्षा, प्रदूषण, कचरा प्रबंधन तथा पानी एवं खाद्य स्नोत प्रबंधन के क्षेत्र में भी तरक्की के नए मार्ग इस अभियान की सफलता के बाद खुलेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)