विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए सप्ताह भर बाद पूरे सात साल हो जाएंगे। एक लंबी कशमकश के बाद ही इस कर व्यवस्था ने आकार लिया था। जीएसटी जैसी व्यवस्था का सुझाव पहली बार वर्ष 2000 में विजय केलकर टास्क फोर्स की अनुशंसा के बाद सामने आया था, लेकिन चूंकि यह एक अत्यंत जटिल मुद्दा था तो इस पर व्यापक सहमति बनाना टेढ़ी खीर साबित हुआ। इसी कारण जीएसटी को साकार रूप लेने में लगभग सत्रह वर्ष लग गए।

अपने पहले कार्यकाल में इस पर राजनीतिक सहमति बनाना मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही। इसने कई प्रकार के केंद्रीय एवं राज्यों के करों को एकीकृत करके टैक्स व्यवस्था को सुगम एवं सहज बनाने का काम किया। अभी जीएसटी की 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत दरों की चार श्रेणियां हैं। कुछ आवश्यक वस्तुएं इसके दायरे से मुक्त हैं। इस एकीकृत कर व्यवस्था ने कई पड़ावों पर लगने वाले विभिन्न करों की जगह एकबारगी कर भुगतान को सुनिश्चित किया। इससे समग्र कर बोझ घटने के साथ ही आर्थिक सक्षमता बढ़ी है। इसके माध्यम से कर संग्रह भी निरंतर बढ़ रहा है।

इस साल मई में 1.73 लाख करोड़ रुपये जीएसटी के जरिये प्राप्त हुए। यह राशि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक रही। चूंकि जीएसटी के मूल स्वरूप में कई प्रविधानों को इसके आरंभ में शामिल नहीं किया गया था तो इस कर व्यवस्था में सुधारों की भी रह-रहकर चर्चा जोर पकड़ती रहती है। इसी सिलसिले में जीएसटी परिषद की हालिया बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के मुद्दे पर चर्चा की। जिस समय जीएसटी लागू हुआ था तब वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने भी ऐसे प्रस्ताव की वकालत की थी। अब इस मुद्दे ने नए सिरे से जोर पकड़ा है। जीएसटी के व्यापक स्वरूप को देखा जाए तो ऐसी कोई भी पहल बहुत सार्थक एवं उपयोगी सिद्ध होगी।

पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लेने के मुद्दे पर राज्यों ने आरंभ से ही हिचक दिखाई है। इसकी वजह भी बहुत सीधी है कि उन्हें इन उत्पादों से भारी राजस्व की प्राप्ति होती है। अलग-अलग राज्यों ने पेट्रोलियम उत्पादों पर अपनी सहूलियत के हिसाब से वैट लगाया है। वहीं केंद्र सरकार प्रति लीटर के आधार पर उत्पाद शुल्क लगाती है, जिसकी दरें पूरे देश के लिए एकसमान होती हैं।

केंद्र और राज्यों के सम्मिलित करों-ड्यूटी से उपभोक्ताओं के लिए ईंधन की कीमत बहुत ऊंची हो जाती है। यदि पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी के दायरे में आएं तो आवश्यक रेवेन्यू न्यूट्रल रेट के चलते देश भर में एकसमान कीमतें संभव हो सकती हैं। इससे जिन राज्यों में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम हैं, वहां उनमें बढ़ोतरी की आशंका होगी, जिसके अपने राजनीतिक जोखिम होंगे। साथ ही साथ जिन राज्यों में कीमत अत्यधिक ऊंची है, वहां दाम गिर जाएंगे।

यदि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी का हिस्सा बनाया जाए तो इसके कई फायदे देखने को मिलेंगे। इससे जहां आर्थिक सक्षमता बढ़ेगी, वहीं उपभोक्ताओं का भी भला होगा। वर्तमान में पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्यों के स्तर पर बहुस्तरीय कर व्यवस्था लागू है। इससे कीमतों का एक जटिल एवं मनमाना ढांचा बन गया है। इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने से देश भर में मानक दरें लागू होंगी और कीमतों के स्तर पर विसंगतियां समाप्त होंगी। जीएसटी में आने से करों का स्तर घटने से कीमतें नरम होने की संभावना है।

इससे आम लोगों से लेकर व्यापारिक उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलेगी। एकसमान जीएसटी दर से कीमतों के मोर्चे पर पारदर्शिता भी बढ़ेगी। जब सभी राज्यों में एकसमान कर व्यवस्था लागू होगी तो एक निर्बाध राष्ट्रीय बाजार का विकास होगा, जो कि जीएसटी के मूलभूत उद्देश्यों में से एक रहा है। इससे राज्यों के बीच पेट्रोलियम उत्पादों की सुगम आवाजाही सुनिश्चित होगी। ढुलाई की लागत घटेगी और आपूर्ति शृंखला में भी सुधार होगा। राज्यों की सीमा पर टैक्स बैरियर्स हटने से ढुलाई की गति एवं उसमें तेल की खपत भी कम होगी। इससे समग्र अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा।

जीएसटी से राज्यों को राजस्व के तत्काल नुकसान की आशंका सता सकती है, लेकिन व्यापक कर दायरे और उससे बढ़ने वाली सक्षमता से लाभान्वित होकर उसकी क्षतिपूर्ति संभव है। जीएसटी परिषद राज्यों के बीच कर राजस्व का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित कर सकती है। ऐसे भी किसी संभावित क्षति की पूर्ति की जा सकती है। समय के साथ इसके माध्यम से बढ़ने वाली सक्षमता एवं अनुपालन सुधार से भी समग्र कर संग्रह में बढ़ोतरी के आसार बनेंगे। पेट्रोलियम उत्पादों पर कर घटाने से उपभोक्ताओं को सस्ते ईंधन का प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। इससे महंगाई पर नियंत्रण में भी मदद मिलेगी, क्योंकि देश भर में तमाम वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत का पेट्रोलियम उत्पादों की दरों से बड़ा सरोकार होता है। सस्ते परिवहन और उत्पादन लागत से तमाम वस्तुओं की कीमतों पर असर पड़ेगा, जिससे जनता को व्यापक रूप से लाभ मिलेगा।

इसलिए यह समय की मांग है कि राज्यों को एकीकृत टैक्स सुनिश्चित करने, पारदर्शिता बढ़ाने और देश भर में करों के ढांचे को सुगम बनाने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार करना चाहिए। इससे जहां जीएसटी के व्यापक उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में कदम बढ़ेंगे, वहीं एक निर्बाध राष्ट्रीय बाजार के लिए आधार बनने के साथ ही आर्थिक सक्षमता की तस्वीर भी बेहतर होगी। इस परिवर्तन की राह में कुछ तात्कालिक चुनौतियां जरूर दस्तक देंगी, लेकिन इसके बड़े दूरगामी लाभ मिलेंगे। इससे जनता को सस्ते पेट्रोलियम उत्पादों का लाभ मिलेगा, वहीं राजस्व व्यवस्था सुसंगत बनेगी। इसलिए पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी ढांचे का हिस्सा बनाने में विलंब नहीं किया जाना चाहिए।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख एवं सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)