यह आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस को आपातकाल के स्मरण पर आपत्ति हो रही है और वह भी तब, जब उसकी ओर से यह दावा किया जा रहा है कि वह संविधान बचाने के लिए प्रतिबद्ध है और इसी क्रम में नई लोकसभा के पहले दिन संसद परिसर में संविधान की प्रतियां लहराई गईं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी यही काम आम चुनाव के समय भी कर रहे थे। यदि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल संविधान बचाने के लिए वास्तव में प्रतिबद्ध हैं तो फिर उन्हें आपातकाल के स्मरण पर आपत्ति क्यों? क्या इसलिए कि उसे थोपने का काम इंदिरा गांधी ने किया था?

आपातकाल थोपकर न केवल लोकतंत्र को कलंकित किया गया था, बल्कि संविधान को कुचलने के साथ देश को बंदीगृह में तब्दील कर दिया गया था। यदि विपक्षी दल और विशेष रूप से कांग्रेस संविधान के प्रति तनिक भी आदर रखती है तो उसे संविधान की प्रतियां लहराने के बजाय आपातकाल के उस काले दौर को न केवल याद करना चाहिए, बल्कि उसे लागू करने वालों की निंदा भी करनी चाहिए।

कांग्रेस को कम से कम यह साहस तो दिखाना ही चाहिए कि वह अपने नेताओं की ओर से आपातकाल थोपे जाने को एक भूल करार दे। यदि वह ऐसा नहीं कर सकती तो फिर वह आपातकाल से लड़ने वालों की आलोचना करने से तो बचे ही। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के हिसाब से केंद्र सरकार को आपातकाल की याद करने के बजाय वर्तमान मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

आखिर ये दोनों काम एक साथ क्यों नहीं हो सकते? क्या अतीत की भूलों को याद नहीं किया जाना चाहिए? ध्यान रहे जो समाज अतीत की गलतियों को भूल जाता है, वह वैसी ही गलतियां फिर करता है।

यह एक कुतर्क ही है कि आपातकाल का स्मरण इसलिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उसे लागू हुए 50 वर्ष होने जा रहे हैं। क्या अब कांग्रेस यह भी कहेगी कि देशवासियों को भारत विभाजन की याद नहीं करनी चाहिए?

यदि कांग्रेस और उसके साथ खड़े राजनीतिक दल ऐसा कुछ सोच रहे हैं कि संविधान की प्रतियां लहराने से देश आपातकाल का स्मरण करना छोड़ देगा और यह भूल जाएगा कि उस दौरान विपक्ष, मीडिया और नागरिक अधिकारों का भयावह दमन करने के साथ संविधान के साथ किस तरह छेड़छाड़ की गई थी और इसी क्रम में न्यायपालिका को भी धमकाया गया था तो यह संभव नहीं।

अच्छा हो कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता संविधान की जिन प्रतियों को लहरा रहे हैं, उन्हें पलट कर और कुछ न सही तो संविधान की प्रस्तावना ही पढ़ लें, ताकि इससे अवगत हो सकें कि किस तरह संविधान को बदलने की कोशिश की गई थी। यह मजाक ही है कि कांग्रेस संविधान बचाने का भी दम भर रही और यह भी कह रही कि मोदी जनादेश की अनदेखी करके प्रधानमंत्री बन गए हैं।