वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से संप्रग शासन के समय के आर्थिक कुप्रबंधन को प्रकट करने वाले श्वेत पत्र में यह जो कहा गया कि तत्कालीन सरकार के तौर-तरीकों से कमजोर अर्थव्यवस्था की नींव पड़ी, उससे असहमत होना कठिन है। यह स्पष्ट ही है कि कांग्रेस को यह श्वेत पत्र रास नहीं आया और इसीलिए उसने मोदी सरकार के कार्यकाल को लेकर आनन-फानन अपना स्याह पत्र पेश किया और यह गिनाया कि कैसे यह सरकार हर मोर्चे पर विफल रही।

कांग्रेस यह सब करके इस तथ्य को नहीं नकार सकती कि मनमोहन सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में किस तरह नीतिगत पंगुता का शिकार बन गई थी। यह नीतिगत पंगुता इस हद तक थी कि खुद तत्कालीन आर्थिक सलाहकार ने यह कहा था कि अब इस पंगुता को चुनाव बाद ही दूर किया जा सकता है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संप्रग शासन के समय किस प्रकार घपले-घोटालों की झड़ी लग गई थी। इनमें बैंक घोटाले भी शामिल थे।

मोदी सरकार के समय जो तमाम बैंक घोटाले सामने आए और जिनका भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा, उनकी नींव मनमोहन सरकार के समय ही पड़ी थी। इन घपलों-घोटालों को लेकर मनमोहन सिंह ने कहा था कि गठबंधन सरकार की कुछ मजबूरियां होती हैं। यह संप्रग शासन के आर्थिक कुप्रबंधन के साथ भ्रष्टाचार पर लगाम न लग पाने का ही दुष्परिणाम रहा कि 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई थी। यदि सब कुछ सही था तो फिर कांग्रेस की इतनी दुर्गति क्यों हुई?

श्वेत पत्र के जवाब में कांग्रेस की ओर से लाए गए स्याह पत्र की मानें तो मोदी सरकार के दस वर्षों का कार्यकाल अन्याय का काल रहा है। कांग्रेस ने इस स्याह पत्र के जरिये आर्थिक के साथ राजनीतिक और सामाजिक मोर्चे पर भी मोदी सरकार की कथित असफलताओं की सूची पेश की है। निःसंदेह ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार की कमियों और कमजोरियों का उल्लेख नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके बाद भी इसे तो अनदेखा नहीं ही कर सकते कि आज देश की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।

जब प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाएं सुस्ती का शिकार हैं, तब विश्व बैंक से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक यह मान रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी आधार मजबूत हैं और वह साढ़े छह-सात प्रतिशत की विकास दर हासिल करती रहेगी। यदि कांग्रेस को मोदी सरकार के आंकड़ों पर यकीन नहीं तो क्या उसे वैश्विक संस्थाओं के आंकड़ों और आकलन पर भी भरोसा नहीं? क्या वह इसे नकार सकती है कि मोदी सरकार राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाने के साथ विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में सफल रही है? इसी तरह क्या वह इस बात को ओझल कर सकती है कि बीते दस वर्षों में आधारभूत ढांचे का द्रुत गति से विकास हुआ है? यह तो सबको दिख रहा है।