यह ठीक नहीं कि केंद्र सरकार को राज्यों से यह कहना पड़ रहा है कि वे स्कूली शिक्षकों के रिक्त पदों को यथाशीघ्र भरें। यह तो वह काम है, जिसे करने के लिए केंद्र सरकार अथवा अन्य किसी को कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए। विडंबना केवल यह नहीं कि इसकी आवश्यकता पड़ रही है, बल्कि यह भी है कि इसके पहले भी केंद्र सरकार की ओर से राज्यों से इस बारे में कहा जा चुका है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि हाल के समय में कुछ राज्यों में शिक्षकों की भर्तियां की गई हैं, क्योंकि अब भी आठ लाख से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं।

इनमें प्राथमिक विद्यालयों के भी शिक्षक हैं और माध्यमिक विद्यालयों के भी। जिन राज्यों में सबसे अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं, उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड प्रमुख हैं। तथ्य यह भी है कि जिन राज्यों में शिक्षकों के अधिक पद रिक्त हैं, उनमें उत्तर भारत के राज्य शीर्ष पर हैं। इससे तो यही लगता है कि उत्तर भारत के राज्य स्कूली शिक्षा की दशा सुधारने के प्रति सजग नहीं। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं। चूंकि शिक्षकों के बिना शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती, इसलिए शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने का काम प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए।

शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के काम को प्राथमिकता न दिया जाना यही बताता है कि राज्य सरकारें स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के प्रति गंभीर नहीं। समस्या यह है कि उच्च शिक्षा के संस्थानों अर्थात महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी शिक्षकों के अच्छे-खासे पद रिक्त हैं। दुर्भाग्य से इनमें केंद्रीय विश्वविद्यालय भी हैं। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को राज्यों को सलाह-मशविरा देने के साथ ही केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर भी गौर करना होगा। आवश्यक केवल यह नहीं है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने में देर न की जाए।

आवश्यक यह भी है कि पठन-पाठन की गुणवत्ता सुधारने पर भी ध्यान दिया जाए। यह तभी संभव होगा, जब शिक्षकों को सही तरह प्रशिक्षित किया जाएगा। देश के तमाम स्कूल केवल शिक्षकों की कमी का ही सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे संसाधनों के अभाव से भी जूझ रहे हैं। इसी कारण स्कूली शिक्षा का स्तर सुधर नहीं पा रहा है। एक के बाद एक अध्ययन यह बताते हैं कि बड़ी संख्या में स्कूली छात्र सामान्य गणित के प्रश्न हल करने में भी सक्षम नहीं हैं। एक समस्या यह भी है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के स्कूल नई शिक्षा नीति के अनुरूप विकसित नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह यह भी किसी से छिपा नहीं कि नई शिक्षा नीति के तहत नई पाठ्यपुस्तकें समय से तैयार नहीं हो पा रही हैं। अच्छा हो कि केंद्र और राज्य सरकारें स्कूली और साथ ही उच्च शिक्षा में सुधार के लिए सक्रियता का परिचय दें।