जब यह माना जा रहा था कि लोकसभा चुनावों के चलते मोदी सरकार अंतरिम बजट में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए कुछ न कुछ लोकलुभावन घोषणाएं अवश्य करेगी, तब उसने इससे परहेज किया। इसके जरिये उसने न केवल पुरानी परिपाटी का परित्याग करते हुए रेवड़ी संस्कृति के खिलाफ संदेश दिया, बल्कि अपने इस आत्मविश्वास का परिचय भी दिया कि वह अपने अब तक के कार्यों के आधार पर ही तीसरी बार सत्ता में आने जा रही है।

ऐसे आत्मविश्वास का परिचय वही सरकार दे सकती है, जो इसे लेकर आश्वस्त हो कि आम जनता का भी उसके प्रति यह भरोसा है कि वह अपने राजनीतिक हितों के स्थान पर देश के आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रही है। आर्थिक हितों की रक्षा वित्तीय अनुशासन का परिचय देकर ही की जा सकती है। अंतरिम बजट के जरिये यही करने की कोशिश की गई है।

अंतरिम बजट यह रेखांकित कर रहा है कि मोदी सरकार की निगाह विकसित भारत के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर है। अंतरिम बजट में इस लक्ष्य को साधने के प्रयत्न इसलिए किए जाने आवश्यक थे, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और वह तीसरी सबसे बड़ी आर्थिकी बनने की राह पर है।

अंतरिम बजट की अपनी सीमाएं होती है, फिर भी यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने आधारभूत ढांचे के विकास को प्राथमिकता प्रदान करते हुए शोध एवं अनुसंधान के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कोष का प्रविधान किया। भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लिए शोध एवं अनुसंधान पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाना समय की मांग थी, क्योंकि इस क्षेत्र में काम किए बिना कोई भी देश विकसित नहीं बन सका है।

अंतरिम बजट का एक अन्य उल्लेखनीय पहलू राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.1 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। सरकार इस कठिन लक्ष्य को इसीलिए सामने रख सकी, क्योंकि वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.8 प्रतिशत तक ही रहने का अनुमान है। पहले यह अनुमान 5.9 प्रतिशत था। साफ है कि तमाम चुनौतियों के बाद भी सरकार वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता प्रदान कर रही है।

अंतरिम बजट इसकी भी पुष्टि कर रहा है कि मोदी सरकार देश को विकसित बनाने के लिए राज्यों को साथ लेकर चलने के लिए भी प्रतिबद्ध है। इसी के तहत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि राज्यों को 50 वर्ष के लिए 75,000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज दिया जाएगा, ताकि वे स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई, जलापूर्ति, बिजली, सड़क, पुल समेत विभिन्न क्षेत्रों में अपनी परियोजनाएं पूरी कर सकें। इससे राज्यों की स्थिति सुधारने में भी मदद मिलेगी और वे देश के विकास में सहभागी बन सकेंगे। यह साफ है कि बड़ी घोषणाओं के लिए पूर्ण बजट की प्रतीक्षा करनी होगी, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि मोदी सरकार ऐसी घोषणाएं करने के लिए बजट की मोहताज नहीं।