नई उम्मीदों का सत्र, टकराव-हंगामे के बदले समस्याओं के समाधान की राह खोजें
संसद की सार्थकता केवल इसमें नहीं है कि वहां विभिन्न मुद्दे उठाए जाएं बल्कि इसमें है कि उन पर गंभीर तरीके से चर्चा हो। दुर्भाग्य से संसद में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर ऐसी कोई चर्चा कठिनाई से ही होती है जिससे देश को कोई दिशा मिल सके और समस्याओं के समाधान खोजे जा सके। उचित यह होगा कि दोनों ही पक्ष संसदीय कार्यवाही के जरिये एक उदाहरण पेश करें।
नई लोकसभा के पहले सत्र को लेकर उत्सुकता पक्ष-विपक्ष के नवनिर्वाचित सांसदों को ही नहीं, बल्कि आम जनता को भी होगी। इसलिए होगी, क्योंकि यह लोकसभा पिछली लोकसभा से भिन्न होगी। इस बार विपक्ष का संख्या बल कहीं अधिक है और सत्तापक्ष गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहा है। यद्यपि यह गठबंधन सरकार अतीत की गठबंधन सरकारों से भिन्न है, क्योंकि उसका नेतृत्व करने वाला दल यानी भाजपा बहुमत से कुछ ही पीछे है। इसके बावजूद संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव देखने को मिल सकता है।
इस टकराव के आसार भी उभर आए हैं, क्योंकि विपक्ष को प्रोटेम स्पीकर के नाम पर आपत्ति है। हालांकि प्रोटेम स्पीकर के सहयोगियों के रूप में विपक्ष के वरिष्ठ सांसदों के नाम तय किए गए हैं, लेकिन कुछ विपक्षी दल ऐसे संकेत दे रहे हैं कि वे इस आधार पर प्रोटेम स्पीकर का असहयोग कर सकते हैं कि इस पद के लिए सबसे वरिष्ठ सदस्य का चयन क्यों नहीं किया गया।
वैसे तो ऐसा कोई नियम नहीं है कि सबसे वरिष्ठ सांसद को ही प्रोटेम स्पीकर के रूप में नियुक्त किया जाए, लेकिन परंपरा यही रही है। अच्छा होता कि इसी परंपरा का पालन किया जाता। जो भी हो, यह कोई ऐसा विषय नहीं जिस पर पक्ष और विपक्ष में तकरार हो। प्रोटेम स्पीकर चंद दिनों के लिए बनाई गई अस्थायी व्यवस्था ही है।
बेहतर संख्या बल के चलते विपक्ष का उत्साहित होना स्वाभाविक है और उसके नेताओं की ओर से विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी में भी कुछ अनुचित नहीं, लेकिन इस तैयारी के नाम पर संसद में हंगामा और शोरशराबा करके ऐसी परिस्थितियां नहीं पैदा की जानी चाहिए जिससे संसद चलने ही न पाए। एक लंबे समय से यह देखने में आ रहा है कि विभिन्न मुद्दों पर सरकार से जवाबदेही के नाम पर विपक्ष संसद में हंगामा और अव्यवस्था पैदा करना उचित समझता है।
यह सिलसिला बंद होना चाहिए, क्योंकि इससे कुल मिलाकर संसद की गरिमा ही गिरती है। जहां विपक्ष का यह दायित्व है कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाओं और अन्य ज्वलंत मुद्दों पर सरकार से जवाब तलब करे वहीं सत्तापक्ष की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहे। यदि ऐसा नहीं होता तो यह निराशाजनक ही होगा।
संसद की सार्थकता केवल इसमें नहीं है कि वहां विभिन्न मुद्दे उठाए जाएं, बल्कि इसमें है कि उन पर धीर-गंभीर तरीके से चर्चा हो। दुर्भाग्य से संसद में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर ऐसी कोई चर्चा कठिनाई से ही होती है जिससे देश को कोई दिशा मिल सके और समस्याओं के समाधान की राह खोजी जा सके। उचित यह होगा कि दोनों ही पक्ष संसदीय कार्यवाही के जरिये एक उदाहरण पेश करें।