विपक्ष के रवैये से यही स्पष्ट हो रहा है कि चीन को लेकर संसद में हंगामा जारी रहेगा। जहां विपक्ष तवांग में चीनी सेना से झड़प के बाद चीन से लगती सीमा पर वस्तुस्थिति को लेकर चर्चा चाह रहा है, वहीं सत्तापक्ष रक्षा मंत्री के वक्तव्य को पर्याप्त बता रहा है। यदि सत्तापक्ष और विपक्ष में इसी तरह गतिरोध जारी रहा तो इससे दुनिया को यही संदेश जाएगा कि चीन को लेकर भारत का राजनीतिक नेतृत्व एकजुट नहीं। यह अच्छी स्थिति नहीं होगी, क्योंकि इस विषय पर पक्ष-विपक्ष को न केवल एकजुट होना चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी स्थिति नहीं बन रही है। यह स्थिति न केवल सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच के अविश्वास को प्रकट करती है, बल्कि यह भी रेखांकित करती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर भी वे एक सुर में बोलने को तैयार नहीं। इसका लाभ चीन उठा सकता है, जो अपनी हरकतों से देश के मनोबल को प्रभावित करना चाहता है।

चीन के इस कुटिल इरादे को पक्ष-विपक्ष के नेताओं को भांपना चाहिए और उन्हें एक सुर में उसे जवाब देने के लिए आगे आना चाहिए। राजनीतिक दलों को इसकी भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि चीन के मामले में उनके मतभेदों का लाभ उठाने वालों में वैश्विक मीडिया का भी एक हिस्सा है। वह तवांग की घटना को मनचाहे तरीके से और तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने में लगा हुआ है। इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि हमारे राजनीतिक दल दलगत राजनीति के फेर में संसद के भीतर अथवा बाहर ऐसा कुछ करें, जिससे चीन को उस असहज स्थिति से बाहर आने का अवसर मिले, जिसका सामना उसे तवांग में हमारे सैनिकों के पराक्रम के चलते करना पड़ा। जब चीनी सैनिकों की एक बार फिर पिटाई हुई और उससे कुछ कहते नहीं बना, तब राहुल गांधी का यह कहना समझ नहीं आया कि अरुणाचल में हमारे सैनिक पिट रहे हैं। आखिर मोदी सरकार को कोसने के चक्कर में उन्होंने सेना का अनादर क्यों किया?

तवांग की घटना के बाद पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दलों के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप कुल मिलाकर चीन को सहज होने का अवसर प्रदान कर रहा है। इससे हर हाल में बचा जाना चाहिए, क्योंकि इस समय आवश्यकता इसकी है कि चीन के साथ विश्व समुदाय को यह संदेश दिया जाए कि चीनी सेना की अतिक्रमणकारी हरकतों का सामना करने के लिए भारत राजनीतिक रूप से भी एकजुट है। एकजुटता का यह संदेश तभी जाएगा जब चीन से निपटने के मामले में हमारे राजनीतिक दलों में आम सहमति नजर आएगी। उचित यह होगा कि सत्तापक्ष इसके लिए जतन करे कि चीन के मामले में विपक्ष आम सहमति की राह पर चलने के लिए तैयार हो। यह दोनों पक्षों में संवाद से ही संभव होगा।