कांग्रेस के रवैये से यह स्पष्ट है कि उसे संसद के नए भवन में स्थापित किया गया सेंगोल रास नहीं आ रहा है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने फिर से दावा किया कि इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में माउंटबेटन को नहीं सौंपा गया था। वह इस तरह का दावा पहले भी कर चुके हैं। उनके अलावा कांग्रेस के अन्य नेता भी यह मानने को तैयार नहीं कि सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के रूप में पहले माउंटबेटन को सौंपा गया और फिर जवाहरलाल नेहरू को। अमेरिका यात्रा पर गए राहुल गांधी भी यह कह चुके हैं कि संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना महज एक नाटक था, जो लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया गया।

इसके पहले कांग्रेस के नेताओं ने यह अभियान छेड़ रखा था कि संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए। यदि ऐसा हो जाता तो शायद कांग्रेस को संसद का नया भवन भी रास आ जाता और सेंगोल की स्थापना भी। जो भी हो, जयराम रमेश एक ओर यह दावा कर रहे हैं कि सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक नहीं और दूसरी ओर यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि उसे नेहरूजी को सौंपा गया था। अच्छा होगा कि कांग्रेस नेता यह बताएं कि उसे किन कारणों से नेहरूजी को सौंपा गया था, क्योंकि इतना तो तय है कि उसे टहलने के लिए इस्तेमाल की जानी वाली छड़ी के तौर पर तो नहीं ही जाना जाता।

जो कांग्रेस सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक न मानने पर इतना जोर दे रही है, उसे यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह चलने वाली छड़ी के रूप में तब्दील होकर प्रयागराज संग्रहालय कैसे पहुंच गया? कांग्रेस की ओर से इस प्रश्न का भी उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या 1947 में तमिलनाडु के जिस मठ ने सेंगोल का निर्माण कराया, वह टहलने वाली छड़ियां बनाने के लिए जाना जाता है? आखिर कोई मठ यह काम क्यों करेगा?

कांग्रेस के नेता कुछ भी दावा करें, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तमिल साहित्य में सेंगोल को सत्ता हस्तातंरण के प्रतीक के तौर पर ही जाना जाता है। इसके भी प्रमाण उपलब्ध हैं कि सेंगोल की परंपरा चोल साम्राज्य के समय शुरू हुई थी। यह भी साफ है कि जैसे इस समय कांग्रेस को संसद के नए भवन में सेंगोल की स्थापना हजम नहीं हो रही है, वैसे ही 1947 में भी तमिलनाडु के कुछ नेताओं ने नेहरूजी की ओर से उसे ग्रहण करने पर सवाल उठाए गए थे। इनमें वामपंथी झुकाव वाले नेता सीएन अन्नादुरै भी थे। यह सही है कि अभी तक इसके कोई प्रमाण नहीं कि सेंगोल नेहरूजी को सौंपने के पहले माउंटबेटन को सौंपा गया था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे महज टहलने वाली छड़ी के रूप में स्वीकार कर लिया जाए।