प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश बजट के संबंध में एक ओर जहां यह कहा कि वह भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने में सक्षम होगा वहीं यह भरोसा भी व्यक्त किया कि उससे देश आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को भी हासिल करेगा। नि:संदेह भारत को आत्मनिर्भर बनाना समय की मांग है और भारत सरकार एक अर्से से इस मांग को पूरा करने को लेकर प्रतिबद्ध भी है, लेकिन यह समझा जाना आवश्यक है कि आत्मनिर्भरता का मूल मंतव्य क्या है?

यह वह समय है जिसे इस रूप में व्याख्यायित किया जाता है कि दुनिया अब एक गांव में तब्दील हो गई है। ऐसे अवसर पर हमें विश्व के साथ न केवल प्रतिस्पर्धा करनी होगी, बल्कि उससे जो कुछ आवश्यक है वह सीखना भी होगा और अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अपनाना भी होगा। आत्मनिर्भरता का वैसा कोई अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए जैसा एक समय सोवियत संघ और उससे प्रभावित देशों ने आत्मसात कर लिया था। मुक्त व्यापार के इस दौर में भारत का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह दुनिया के लिए उसी तरह कारखाना बने जैसे चीन बना हुआ है।

चूंकि कोरोना के बाद विश्व समुदाय न केवल चीन से दूरी बनाने में लगा है, बल्कि उस पर अपनी निर्भरता भी घटा रहा है इसलिए भारत के उद्यमियों के समक्ष एक अवसर है कि वे दुनिया के उस बाजार तक अपनी पहुंच बनाएं जिस पर चीन ने आधिपत्य जमा रखा था। यह सही अवसर है जब इस बात की समीक्षा की जाए कि भारत में वे अनेक उद्योग क्यों नहीं आ सके जो चीन से पलायन कर रहे थे और अपने लिए अनुकूल ठिकाने की तलाश कर रहे थे? इस पर विचार होना चाहिए कि भारत उन कारखानों के लिए अनुकूल जगह कैसे बने जो चीन से बाहर आना चाह रहे हैं? निश्चित रूप से चीन की चुनौती का सामना तभी किया जा सकेगा जब भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता विश्वसनीय होने के साथ ही विश्वस्तरीय भी होगी।

यदि भारत को वास्तव में आत्मनिर्भरता के अपने लक्ष्य को हासिल करना है तो हमारे उद्यमियों को और अधिक सक्रियता एवं कल्पनाशीलता दिखानी ही होगी। जब भारत दुनिया के लिए एक नए कारखाने के रूप में उभरेगा तब न केवल देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जैसे कदम भारत सरकार उठा रही है वैसे ही कदम राज्य सरकारों को भी उठाने होंगे। वास्तव में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग एवं समन्वय न केवल कायम होना चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए। आम बजट में राज्यों के लिए जो एक लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है उसका सदुपयोग हो, इसे राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए।