यह अच्छा है कि तवांग में चीनी सेना से झड़प के बाद भारत सरकार का ध्यान एक बार फिर चीन से होने वाले आयात पर गया और उसने वहां से आने वाले तैयार माल में कमी करने के लिए कमर कसी, लेकिन बात तब बनेगी, जब इसमें सफलता मिलेगी। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि करीब ढाई वर्ष पहले गलवन में खूनी झड़प के बाद भी चीन से व्यापार घाटे को कम करने के लिए कदम उठाए गए थे और मेक इन इंडिया को गति देने के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया गया था, लेकिन उसके वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए। यदि उन कारणों की पहचान कर उनका निवारण नहीं किया जाता, जिनके चलते चीन से आयात होने वाली सामग्री कम नहीं हो पाई तो फिर से नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही हो सकता है।

यह चिंताजनक है कि चीन से आयात कम होने के बजाय बढ़ रहा है। इसके चलते उससे व्यापार घाटा बढ़ रहा है। एक ऐसे समय जब चीन भारत से लगती सीमा पर आक्रामकता दिखा रहा है, तब यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि आपसी कारोबार का पलड़ा उसके पक्ष में झुका रहे। इसका मतलब है कि वह हमारे ही पैसे से हमारे लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है। सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने के साथ चीन से व्यापार में संतुलन लाना भारत सरकार की पहली प्राथमिकता बननी चाहिए। चीनी वस्तुओं पर निर्भरता खत्म करने और उसके यहां से होने वाले आयात को कम करने में सफलता तब मिलेगी, जब हमारा उद्योग जगत इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आएगा। समझना कठिन है कि वह इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार क्यों नहीं है? सरकार उद्यमियों को इसके लिए प्रोत्साहित ही कर सकती है कि वे उन वस्तुओं का उत्पादन करें, जिनका चीन से आयात होता है। गुणवत्ता के मामले में इन वस्तुओं का उत्पादन न केवल घरेलू बाजार की आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिए, बल्कि विश्व बाजार में स्थान बनाने वाला भी।

चीन से केवल तैयार माल के आयात में कमी करने के लिए ही जतन नहीं होने चाहिए, क्योंकि वहां से कच्चा माल कहीं बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है। विडंबना यह है कि इसमें कुछ सामग्री वह भी है, जिसका निर्माण एक समय भारत में होता था। भारत सरकार को एक ओर जहां उद्यमियों को चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार करना चाहिए, वहीं आम जनता के लिए भी यह आवश्यक है कि वह भी चीनी वस्तुओं पर निर्भरता छोड़े। सरकार को यह भी समझना होगा कि चीन को सही संदेश देने के लिए कोई नए उपाय करने होंगे, क्योंकि यह स्पष्ट है कि गलवन की घटना के बाद उसके एप्स पर पाबंदी लगाने के जो कदम उठाए गए थे, वे कोई बहुत अधिक कारगर नहीं हुए।