यह अच्छा है कि जहां नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की ओर से रद एवं स्थगित की गई परीक्षाओं को फिर से आयोजित करने की तैयारी की जा रही है, वहीं इस एजेंसी की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति परीक्षाओं को पारदर्शी बनाने के लिए छात्रों, अभिभावकों और शिक्षाविदों से विचार-विमर्श करने जा रही है, लेकिन और भी अच्छा होता कि यह सब बहुत पहले कर लिया जाता।

यदि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय तभी चेत जाता, जब पहली बार एनटीए की किसी परीक्षा को लेकर प्रश्न खड़े हुए थे तो संभवतः आज जो स्थिति बनी, वह नहीं बनती। केंद्र सरकार और विशेष रूप से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को यह आभास होना चाहिए कि एनटीए की कार्यप्रणाली में खामी के चलते न केवल मेडिकल कालेजों में प्रवेश की परीक्षा यानी नीट की विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल खड़े हुए, बल्कि ऐसे ही सवालों की आशंका के चलते कुछ और परीक्षाओं को रद अथवा स्थगित करना पड़ा।

इसके चलते करीब 37 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं। यह एक बहुत बड़ी संख्या है और आश्चर्य नहीं कि इन छात्रों और उनके अभिभावकों के मन में सरकार के प्रति असंतोष हो। जैसे केंद्र सरकार केंद्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता बनाए रखने को लेकर समय रहते नहीं सजग हुई, वैसी ही गलती कई राज्य सरकारों से भी हुई।

पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से आयोजित की गई प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र या तो लीक हो गए या उनके परिणामों को लेकर सवाल उठे। कुछ ऐसी भी प्रतियोगी परीक्षाएं रहीं, जो समय पर संपन्न तो हो गईं, लेकिन उनके परिणाम तय अवधि में घोषित नहीं किए गए। हैरानी नहीं कि इन सब कारणों से हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ माहौल बना हो।

वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में शायद ही कोई ऐसी राज्य सरकार रही हो, जिसकी प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक न हुए हों, लेकिन औरों से अलग होने का दावा करने वाली भाजपा की केंद्र एवं राज्य सरकारों से यही अपेक्षित था कि वे इन मामलों पर कहीं अधिक सजगता का परिचय देतीं। कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों नहीं किया गया?

आखिर छात्रों के हितों की रक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रति उनके भरोसे को बनाए रखने के लिए अब जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे पहले क्यों नहीं उठाए जा सके? भाजपा नेतृत्व और उसकी सरकारों को यह आभास होना चाहिए कि समय पर सही कदम न उठाने के क्या दुष्परिणाम होते हैं?

हो सकता है कि परीक्षाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर जो पहल की जा रही है, उसके सार्थक परिणाम सामने आएं, लेकिन प्रश्न यह है कि विभिन्न परीक्षाओं को रद एवं स्थगित करने अथवा उनके परिणाम घोषित करने में देरी के कारण लाखों छात्रों को जो परेशानी उठानी पड़ी, क्या उसकी भरपाई संभव है?