यह ठीक नहीं कि पिछले दिनों संसद की सुरक्षा में जो सेंध लगी, उस पर दोनों सदनों में हंगामा हो रहा है। सुरक्षा में गंभीर चूक के इस मामले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा ही हो रहा है। विपक्षी दल इस मांग पर अड़े हैं कि गृह मंत्री को संसद आकर तुरंत अपना बयान देना चाहिए।

इस मांग को निराधार नहीं कहा जा सकता, लेकिन अभी जब जांच एजेंसियां इन प्रश्नों के उत्तर तलाश ही रही हैं कि संसद के भीतर–बाहर सनसनी फैलाने वालों के पीछे कौन था, उन्हें किससे मदद मिली और उनका इरादा क्या था, तब फिर गृह मंत्री अपेक्षित जानकारी कैसे दे सकते हैं?

चूंकि अभी तक जो जानकारी आई है, उससे लोकसभा अध्यक्ष सदन को अवगत करा चुके हैं, इसलिए बेहतर यही होता कि विपक्षी दल कुछ दिन प्रतीक्षा करते। उचित यह होगा कि सत्तापक्ष की ओर से दोनों सदनों में विपक्ष को आश्वस्त किया जाए कि संसद की सुरक्षा में चूक के मामले में गृह मंत्री यथाशीघ्र संसद को अवगत कराएंगे।

विपक्ष को भी हंगामा करने के बजाय सत्तापक्ष को कुछ दिन की मोहलत देनी चाहिए, ताकि सरकार इस मामले में पर्याप्त जानकारी दे सकने में समर्थ हो सके। चूंकि संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति में कुछ ही दिन बचे हैं इसलिए सत्तापक्ष और विपक्ष को इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए कि बाकी बचे दिनों में प्रस्तावित विधायी कार्य हो सकें। दुर्भाग्य से इसके आसार कम ही हैं, क्योंकि विपक्ष ने लोकसभा और राज्यसभा के उन 14 सांसदों के निलंबन को एक मुद्दा बना लिया है, जिन्होंने संसद में हंगामा किया।

यह कहना कठिन है कि अगले सप्ताह संसद चल सकेगी या नहीं, लेकिन इस नतीजे पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि लोकसभा की दर्शक दीर्घा से सदन में कूदकर सनसनी फैलाने और संसद के बाहर हंगामा करने वाले किसी बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकते हैं। संसद की सुरक्षा को भेदने और संसद के बाहर अफरातफरी फैलाने वालों के एक सहयोगी ने जिस तरह अपने साथियों के मोबाइल जला डाले, उससे यही पता चलता है कि उनका इरादा केवल बेरोजगारी को लेकर सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा निकालना भर नहीं था।

यह निराशाजनक है कि कई विपक्षी नेताओं समेत अन्य लोग संकीर्ण राजनीतिक कारणों के चलते संसद की सुरक्षा को खतरे में डालने वालों के प्रति हमदर्दी जताने के साथ यह माहौल भी बनाने में लगे हुए हैं कि उनका अपराध तो बहुत मामूली है।

यह मामूली नहीं, बहुत गंभीर अपराध है। इसका एक बड़ा आधार यह है कि उन्होंने 22 वर्ष पहले संसद में हुए आतंकी हमले की बरसी पर संसद की सुरक्षा को भेदने का काम किया। जैसे इस सवाल का जवाब मिलना चाहिए कि आखिर उन्होंने इसी दिन को क्यों चुना, वैसे ही इसकी तह तक भी जाना चाहिए कि संसद की सुरक्षा में सेंध कैसे लग गई?