केंद्र सरकार की ओर से विवाद का विषय बने वक्फ अधिनियम में संशोधन की तैयारी समय की मांग है। इस अधिनियम में व्यापक संशोधन-परिवर्तन किए जाने की संभावना है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि इस अधिनियम में किस तरह के संशोधन-परिवर्तन होंगे, लेकिन यह तय है कि वक्फ बोर्डों को संपत्ति के दावे संबंधी जो भी मनमाने अधिकार मिले हुए हैं, उनमें कटौती होगी।

यह होनी ही चाहिए, क्योंकि अभी स्थिति यह है कि यदि किसी राज्य का वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा कर दे तो बिना सत्यापन वह उसके अधिकार क्षेत्र में मान ली जाती है। ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति को यह साबित करना होता है कि संबंधित संपत्ति उसकी है। इस तरह की व्यवस्था न्याय के मौलिक सिद्धांतों के विपरीत है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वक्फ बोर्डों को कैसे मनमाने अधिकार हासिल हैं।

इसका प्रमाण तमिलनाडु के उस मामले से मिलता है जिसमें राज्य वक्फ बोर्ड ने एक गांव के मंदिर और उसके आसपास की जमीनों पर अपना दावा ठोक दिया था। यह इसलिए हास्यास्पद था, क्योंकि यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना अर्थात इस्लाम के उदय के पहले का था। वक्फ बोर्डों की मनमानी के ऐसे अन्य अनेक मामले भी हैं।

वक्फ अधिनियम में केवल इसलिए संशोधन नहीं किया जाना चाहिए कि वक्फ बोर्डों को संपत्ति के दावे संबंधी मनमाने अधिकार मिले हुए हैं, बल्कि इसलिए भी किया जाना चाहिए ताकि वक्फ की संपत्तियों का दुरुपयोग और उन पर अवैध कब्जे का सिलसिला थमे। देश भर में वक्फ बोर्डों के पास 8.5 लाख संपत्तियां हैं, जो नौ लाख एकड़ में फैली हुई हैं। इसके बावजूद राज्य सरकारों को वक्फ बोर्डों को अनुदान देना पड़ता है।

स्पष्ट है कि वक्फ की संपत्तियों का सही तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है। उन पर केवल अवैध कब्जे ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि उन्हें गलत तरीके से बेचा भी जा रहा है। ऐसे कुछ मामलों की जांच भी हो रही है। उत्तर प्रदेश में तो ऐसे मामले की जांच सीबीआइ की ओर से की जा रही है। वक्फ की जमीन का उपयोग घोषित उद्देश्यों अर्थात मजहबी एवं मुस्लिम समाज के कल्याण के कार्यों में ही होना चाहिए।

अभी ऐसा नहीं हो रहा है और वक्फ संपत्तियों से होने वाली कमाई का बेजा लाभ वक्फ बोर्डों पर काबिज लोग उठा रहे हैं। इसी कारण वक्फ बोर्डों की संपत्तियों का लाभ मुस्लिम समाज के निर्धन-वंचित लोगों को नहीं मिल पा रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि वक्फ अधिनियम में संशोधन-परिवर्तन के विवरण से परिचित हुए बिना कई मुस्लिम नेताओं ने विरोध जताना शुरू कर दिया है।

उनके पास ले-देकर यही कुतर्क है कि मोदी सरकार की नीयत ठीक नहीं। उनकी ओर से ऐसा ही कुतर्क तीन तलाक मामले में भी दिया जा रहा था। यदि मुस्लिम नेता यह नहीं चाहते कि वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग जारी रहे तो उन्हें वक्फ अधिनियम में सुधार की पहल का समर्थन करना चाहिए।